गांव में अंधविश्वास की परम्परा: ग्रामीण वाले खुद को बताते है पांडवों का वंशज, मन्नत पूरी कराने और बहन की विदाई करने के लिए कांटों की सेज पर लेटते हैं
संपादकीय
म.प्र.- मध्य प्रदेश के बैतूल के एक गांव में अंधविश्वास की परम्परा के चलते लोग इक्कीसवीं सदी में भी कांटो पर लेट कर परीक्षा देते है. यहां आज भी आस्था के नाम पर एक दर्दनाक खेल खेला जा रहा है. अपने आप को पांडवों का वंशज कहने वाले रज्जड़ समाज के लोग अपनी मन्नत पूरी कराने और बहन की विदाई करने के लिए खुशी-खुशी कांटों की सेज पर लेटते हैं. बैतूल के सेहरा गांव में हर साल अगहन मास पर रज्जड़ समाज के लोग इस परंपरा को निभाते हैं. इन लोगों का कहना है कि हम पांडवों के वंशज हैं. पांडवों ने कुछ इसी तरह से कांटों पर लेटकर सत्य की परीक्षा दी थी इसीलिए रज्जड़ समाज इस परंपरा को सालों से निभाता आ रहा है।
रज्जड़ समाज के लोग पूजा के बाद नुकीले कांटों की झाड़ियां लाते हैं तोड़कर
इन लोगों का मानना है कि कांटों की सेज पर लेटकर वो अपनी आस्था, सच्चाई और भक्ति की परीक्षा देते हैं. ऐसा करने से भगवान खुश होते हैं और उनकी मनोकामना भी पूरी होती है. इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस कार्यक्रम के बाद वे अपनी बहन की विदाई करते है. रज्जड़ समाज के ये लोग पूजा करने के बाद नुकीले कांटों की झाड़ियां तोड़कर लाते हैं और फिर उन झाड़ियों की पूजा की जाती हैं. इसके बाद एक-एक करके ये लोग नंगे बदन इन कांटों पर लेटकर सत्य और भक्ति का परिचय देते हैं।