कवर्धा : जिले से लगभग 80 किमी दूर हरे-भरे जंगलों और पहाड़ियों के बीच बसा दलदली गांव प्राकृतिक सौंदर्य से तो समृद्ध है, किन्तु बुनियादी जरूरतों में सबसे अहम पानी के लिए आज भी जूझ रहा है। लगभग 600 की आबादी वाले इस गांव में ज्यादातर लोग विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा से हैं, और विडंबना यह है कि यह वही इलाका है, जहां से हर साल करोड़ों रुपयों की रॉयल्टी सरकार को मिलती है, क्योंकि यहीं जिले की एकमात्र बॉक्साइट कि खदान है।
दिखने में हरा-भरा और शांत गांव है, लेकिन वास्तिवकता में यहां की महिलाएं और बच्चे रोज पानी के लिए जद्दोजहद करते हैं। झिरिया, यानी मिट्टी के गड्ढों से गंदे पानी को छानकर पीना इनकी मजबूरी बन गयी है। गर्मियों में तो हालत और खराब हो जाता है – कई बार सिर्फ पानी ढूंढ़ते हुए इनका पूरा दिन निकल जाता है। यह पानी न केवल गंदा होता है, बल्कि उसमें तरह-तरह के बैक्टीरिया और कीटाणु भी हो सकता है, जिससे गांव के लोगों में संक्रामक बीमारियां फैलने का डर हर समय बना रहता है। इस स्थिति की जानकारी ग्रामीणों ने कई बार शासन-प्रशासन को दी है और शिकायतें भी दर्ज करवाया है, लेकिन आज तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है। हैरानी की बात यह है कि जहां से सरकार को करोड़ों रुपयों की आमदनी हो रही है, वहीं उसी गांव के लोग पानी की एक बूंद के लिए तरस रहे हैं।