रानीतराई :- धार्मिक व भावनात्मक मुद्दों के बीच कुपोषण पर चिन्तन आवश्यक है, वर्तमान समय में विकास अर्थ लम्बी चौड़ी व चमकती सड़के के गाड़ियाँ दूर संचार माध्यम कम्प्यूटर व आधुनिक सामग्री तक सीमित रह गया है,कुल मिलाकर सुख सुविधाओं व उपभोग की सामग्री से परिपूर्ण जीवन की सृष्टि,आम जनता के सरोकार गायब हो रहे हैं, विकास के इन प्रचलित रूपों व स्थाई रूप से छाये धार्मिक मुद्दों ने गरीबी भूख व कुपोषण की चिंता को पीछे धकेल दिया है, कुपोषण से त्रस्त जनता व मासूमो के काल कवलित हो रहे माहौल में धर्म धारणा कैसें जीवंत होगा यह सोचने का विषय है,शायद हम वह कार्य संस्कृति विकसित नहीं कर पाये जो मानवता को पोषित करती हो या परहित सरिस धर्म नहि भाई को चरितार्थ करतीं हो।
कुपोषण आज देश की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है,अधिकांश जनता आज कुपोषण का शिकार है,इसमें भी बच्चे व महिलाएं सबसे अधिक कुपोषित हैं जिसके कारण वे असमय ही रोगों से ग्रसित व काल कवलित हो जाते हैं, बच्चों व महिलाओं के अधिकाँश रोगों का मूल कारण कुपोषण ही है।गरीबी भूख व कुपोषण जैसी गम्भीर समस्याओं का समाधान व मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कराना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए,लम्बे समय तक शरीर को आवश्यक संतुलित आहार का न मिलना ही कुपोषण है इसके कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाता है जिससे शरीर आसानी से बीमारियों से ग्रसित हो जाता है।
हाल ही में आई वैश्विक भूख सूचकांक की रिपोर्ट में भूख व कुपोषण के मामले में भारत 121 देशों मे 107 वें नम्बर पर है,पाकिस्तान व नेपाल से भी खराब हालत में है, पड़ोसी देश पाकिस्तान बांग्ला देश नेपाल और श्री लंका भारत के मुकाबले कहीं अच्छी स्थिति में है,वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की हालत पहले से भी खराब हो गई है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर साल भारत में कुपोषण के कारण पाँच साल से कम उम्र के मरने वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है, और रिपोर्ट में बच्चों को खाना न मिलने के साथ ही खाने की बर्बादी का भी ब्योरा दिया गया है,बढ़ती गरीबी भूख व कुपोषण कैसा भयावह रुप ले रही है यह वैश्विक भूख सूचकांक और संयुक्त राष्ट्र के इन रिपोर्टों के आधार पर देखा जा सकता है,आज भी समाज का बड़ा हिस्सा घोर विषमता व कुपोषण से अभिशप्त है, कुपोषण के मामले में देश आज भी बुरी स्थिति में है।
छत्तीसगढ़ में भी कुपोषण की स्थिति चिन्ता जनक है, कुपोषण यहाँ की दूसरी सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है,यहाँ आज भी लाखों बच्चे गम्भीर रूप से कुपोषित हैं, हाल ही में पण्डो जनजाति का व्यक्ति कुपोषण का शिकार हुआ था,सबसे ज्यादा बुरी स्थिति ट्राईबल इलाकों की है,भूख व कुपोषण के चलते अगर मासूमो को जान गंवानी पड़ रही है तो यह सोचने का वक्त है कि तमाम विकास की नीतियों व विकास के इतने लम्बे सफर में हमारी सफलता इतने दुखद क्यों है, विकास के नाम पर बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना व बड़े-बड़े बांथो का निर्माण भले ही हो गया हो या हो रहा हो पर भुखमरी व कुपोषण की समस्या का कोई समाधान नहीं हो पाया है,सबसे गरीब इलाकों में आज भी बच्चे भुखमरी के कारण जान गंवा रहे हैं, गौरतलब है कि सरकार व समाज भूख व कुपोषण की ओर ध्यान दे और इसके लिए जरूरी कदम उठाये जायँ तो असमय होने वाली इन मौतों को रोका जा सकता है, छोटे बच्चों का मुख्य आहार दूथ का सेवन है लेकिन पशुपालन मे आईं कमी व दूध के लगातार बढ़ते कीमत के कारण यह पर्याप्त मात्रा में बच्चों तक नहीं पहुँच पाता है अतः इस ओर ठोस कदम उठाने की जरुरत है, कुपोषण सिर्फ चिकित्सा का मामला नहीं है बल्कि वास्तव मेँ कुपोषण बहुत सारे सामाजिक व राजनीतिक कारणों का परिणाम भी है, वर्तमान में खाद्य भंडारण तेजी से बढ़ा है लेकिन असुरक्षित रखरखाव और भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं हो पाने के कारण खाद्य भंडारण का अधिकाँश अन्न खराब हो जाता है या नष्ट हो जाता है,फलस्वरूप जनता की भूख मिटाने के लिए इसका इस्तेमाल अपेक्षाकृत नहीं होता, इसके अलावा आधुनिक भोज पार्टियों के कथित बफे सिस्टम में अन्न की बहुत बर्बादी होती है,यह भी विडम्बना है कि एक ओर बच्चे भूख व कुपोषण से काल कवलित होते हैं वहीं दूसरी ओर इन भोज पार्टीयो में खाने को व्यर्थ फेंका जाता है,आधुनिक समाज की यह व्यवस्था मूलभूत विडम्बना व विषमता का संकेतक है, ज्ञातव्य है कि अनाथ घुमंतू बेसहारा व भीख मांगने वाले बच्चों व लोगों को पर्याप्त पोषक आहार नहीं मिलता है, जब देश का इक्कीस फीसदी बचपन कुपोषण से जूझ रहा हो तो आर्थिक भविष्य व उत्कृष्ट मानव संसाधन विकास की बात निरर्थक है, आर्थिक विषमता का परिणाम यह है कि खास लोग अपनी विलासिता एवं गैर-जरूरी चीजों पर जितना खर्च करते हैं वह पूरी जनसंख्या के बुनियादी स्वास्थ्य पोषण एवं शिक्षा के लिए जरूरी खर्च से कहीं अधिक है,पूर्णरूपेण कुपोषणमुक्त समाज बनाना जटिल कार्य है लेकिन सरकार व जनता इसमे सहयोग दे तो यह कार्य मुश्किल नहीं है,सबसे अधिक जरूरत किसानों की है क्योंकि गरीबी भूख व कुपोषण को मिटाने के लिए कृषि पर पर्याप्त ध्यान देने की जरूरत है, अधोसंरचना विकास की तुलना में कृषि मे लगाई पून्जी अधिक प्रभावी हो सकता है।अगर हम चाहते हैं कि कोई भूखा न रहे कुपोषण का शिकार न बने तो हमें कृषि में निवेश को बढावा देकर पशुपालन व कृषि को प्रोत्साहित करना चाहिए, अतः आज के समय में विकास का रूप ऐसा हो जो एकांकी आर्थिक प्रगति एवं मूल्यविहीन फिजूल भोगवादी संस्कृति से मुक्त हो,जिसमेँ व्यक्ति गरीबी भूख कुपोषण व अन्य मानवीय शोषण के दंश से पीड़ित न हो, यह तभी संभव है जब मनुष्य की भोगवादी प्रवृत्ति पर अंकुश लगा कर भूखो व कुपोषित लोगों के प्रति सहयोग सहकार व सहानुभूति के लिए प्रेरित किया जा सके, हमे अनुभव करना होगा कि मौजूदा परिवेश में सर्वाधिक आवश्यकता मानवीय संवेदना को विकसित करने की है,ऐसा होने से ही विकास की अन्धी दौड़ में पीडितो भूखे व कुपोषित लोगों के घोर निराशा एव अस्तित्व के संकट की समस्या का समाधान सम्भव हो सकेगा और मनुष्य के समग्र एवं सार्थक विकास का पथ प्रशस्त होगा। आपका सेवाभावी शुभ चिंतक “डॉ. बिजेन्द सिन्हा”