विकास नहीं, विनाश की नीति—जंगल कटाई और वन्यजीव मौतों पर सरकार मूक-बधिर

राजनांदगांव_छत्तीसगढ़ _जल, जंगल और जमीन छत्तीसगढ़ की मूल प्राकृतिक पहचान और सबसे बड़ी धरोहर हैं, लेकिन वर्तमान सरकार की नीतियों के चलते आज यही धरोहरें सबसे बड़े संकट का सामना कर रही हैं। प्रदेश में अंधाधुंध जंगल कटाई और संरक्षित वन्यजीवों की लगातार हो रही मौतों ने वन एवं पर्यावरण संरक्षण व्यवस्था को पूरी तरह कटघरे में खड़ा कर दिया है।सूरजपुर में बाघ और खैरागढ़ में तेंदुए की संदिग्ध मौत के बाद यह सवाल और गहरा हो गया है कि आखिर छत्तीसगढ़ के जंगल और वन्यजीव किसके भरोसे छोड़ दिए गए हैं। ये घटनाएं केवल संयोग नहीं, बल्कि व्यवस्था की गंभीर विफलता को उजागर करती हैं।
इन घटनाओं को लेकर युवा नेता एवं पूर्व पार्षद ऋषि शास्त्री ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि “जो सरकार जल, जंगल और जमीन की रक्षा की बात करती है, उसी के शासनकाल में जंगल काटे जा रहे हैं और वन्यजीव मारे जा रहे हैं। यह महज़ लापरवाही नहीं, बल्कि नीतिगत विफलता और राजनीतिक संरक्षण का परिणाम है।”
ऋषि शास्त्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जब संरक्षित वन्यजीव तक सुरक्षित नहीं हैं, तो यह सीधे तौर पर वन विभाग और वन मंत्री की जिम्मेदारी बनती है। ऐसे में वन मंत्री केदार कश्यप को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए तत्काल अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए।उन्होंने कहा कि विकास, खनन और बड़ी परियोजनाओं के नाम पर लगातार वन क्षेत्रों को नष्ट किया जा रहा है। जंगलों के सिमटने से वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास खत्म हो रहा है, जिसका सीधा असर बाघ, तेंदुआ जैसी संरक्षित प्रजातियों पर पड़ रहा है।
ऋषि शास्त्री ने चेताया कि यदि यही नीतियाँ जारी रहीं, तो आने वाले समय में हालात इतने भयावह हो सकते हैं कि देश को दूसरे देशों से वन्यप्राणी लाने की नौबत आ जाए। यह सवाल अब केवल पर्यावरणविदों तक सीमित नहीं, बल्कि आम जनता के भविष्य से जुड़ा गंभीर मुद्दा बन चुका है।





