गरियाबंद में अवैध प्लाटिंग पर सख्ती या खानापूर्ति? दो समान प्रकरण, दो अलग आदेश, उठे सवाल

गरियाबंद (किरीट ठक्कर): गरियाबंद में अवैध प्लाटिंग के मामलों पर अनुविभागीय अधिकारी (रा) न्यायालय की कार्यवाही इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। वर्ष 2021 से 2022 के बीच दर्ज 13 प्रकरणों में से 12 में हाल ही में 20 मार्च 2025 को आदेश पारित कर 6 अनावेदकों पर 10-10 हजार रुपये की शास्ति अधिरोपित की गई है, जबकि एक प्रकरण पूर्व पीठासीन अधिकारी द्वारा 16 अक्टूबर 2024 को नगर पालिका सीमा में आने के कारण खारिज कर दिया गया। ⬇️शेष⬇️

प्रश्न यह उठ रहा है कि करीब पांच वर्ष पूर्व दर्ज इन प्रकरणों पर निर्णय तो 20 मार्च 2025 को पारित हुआ, किंतु उसे सार्वजनिक करने में लगभग एक माह की देरी क्यों हुई? जानकारों का मानना है कि यह कार्यवाही मात्र औपचारिकता अथवा “लीपा-पोती” है। छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 172 (4) के तहत जहां न्यूनतम 10 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है, वहीं अधिकतम दंड की कोई स्पष्ट सीमा नहीं है। ऐसे में भू-माफियाओं को सिर्फ 10 हजार की शास्ति क्या वाकई प्रभावी सजा है ? यह सवाल आम लोगों के बीच गूंज रहा है। ⬇️शेष⬇️

क्या क्रेताओं पर आयेगा भार?
हालिया 20 मार्च 2025 को न्यायालय द्वारा पारित आदेश में स्पष्ट किया गया है कि संबंधित भूखंडों का पुनरीक्षण कर तहसीलदार गरियाबंद को शास्ति सहित भू-राजस्व निर्धारण करने एवं व्यपवर्तन की प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिये गये हैं। इसका अर्थ यह निकाला जा रहा है कि अब भार उन क्रेताओं पर आयेगा, जिन्होंने कृषि भूमि को अवैध रूप से खरीदा।
* हालांकि, राजस्व संहिता के जानकारों का मानना है कि पुनरीक्षण का अधिकार तहसीलदार को नहीं है, जिससे इस आदेश की वैधानिकता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।⬇️शेष⬇️

समान मामला, लेकिन अलग फैसला!
इसी तरह का एक पुराना मामला वर्ष 2016-17 में दर्ज हुआ था – प्रकरण क्रमांक 2761/ब-121, जिसमें मसूद खान एवं शरीफ खान ने ग्राम पारागांव की कृषि भूमि को बिना अनुमति के छोटे टुकड़ों में बेच दिया था। न्यायालय अनुविभागीय अधिकारी ( रा.) गरियाबंद ( तत्कालीन पीठासीन अधिकारी ) द्वारा जांच के बाद दोष सिद्ध करते हुए दोनों अनावेदकों पर 10-10 हजार रुपये का अर्थदंड तो लगाया ही, साथ ही क्रेताओं को की गई जमीन की बिक्री को शून्य घोषित कर दिया।
* यहां यह, अंतर ध्यान देने योग्य है कि पुराने मामले में जहां खरीदी गई भूमि का अंतरण ही रद्द कर दिया गया, वहीं हाल के मामलों में केवल जुर्माना लगाकर आदेशित किया गया कि आगे की कार्यवाही तहसीलदार द्वारा की जाये।⬇️शेष⬇️

प्रशासन की मंशा पर उठते सवाल
इन दोनों प्रकरणों की तुलना करते हुये आम जनता में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या प्रशासन अवैध प्लाटिंग करने वालों पर वास्तव में सख्त है या केवल औपचारिकता निभा रहा है ? क्या जुर्माने की राशि महज प्रतीकात्मक है ? और क्या भविष्य में भी ऐसे मामलों में खरीदारों को ही भुगतना पड़ेगा?
* साफ है, गरियाबंद में अवैध प्लाटिंग के प्रकरणों को लेकर न्यायालय की असंगत कार्यवाही ने ना केवल प्रशासन की गंभीरता पर सवाल खड़े किये हैं, बल्कि आम जनमानस में चिंता की लहर भी दौड़ा दी है।

Advertisement

"छत्तीसगढ़ 24 न्यूज़" के लिए किरीट ठक्कर की रिपोर्ट
"छत्तीसगढ़ 24 न्यूज़" के लिए किरीट ठक्कर की रिपोर्टhttps://chhattisgarh-24-news.com
किरीट ठक्कर "छत्तीसगढ़ 24 न्यूज़" संवाददाता
ताज़ा खबरे

Video News

"छत्तीसगढ़ 24 न्यूज़" के कंटेंट को कॉपी करना अपराध है। 

error: \"छत्तीसगढ़ 24 न्यूज़\" के कंटेंट को कॉपी करना अपराध है।