गुरू घासीदास बाबा जी के 268वीं जयंती पर दी प्रदेश अध्यक्ष श्री घनश्याम वर्मा ने प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

रायपुर : छत्तीसगढ़ लोधी समाज के प्रदेश अध्यक्ष श्री घनश्याम वर्मा ने आज 18 दिसंबर को ‘मनखे मनखे एक सामान’ सतनाम के प्रवर्तक छत्तीसगढ़ के जनमानस को एक नई सकारात्मक दिशा देने वाले महान संत परम पूज्य गुरू घासीदास बाबा जी के 268वीं जयंती एवं गुरु पर्व की पुरे प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं प्रेषित किया है।          ⬇️शेष नीचे⬇️

श्री वर्मा ने गुरू घासीदास बाबा जी के जयंती अवसर पर उन्हें संक्षिप्त जानकारी देते हुए बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले के गिरौदपुरी गांव में पिता महंगुदास जी एवं माता अमरौतिन के यहाँ अवतरित हुये थे गुरू घासीदास बाबा जी सतनाम पंथ जिसे आम बोल चाल में सतनामी समाज कहा जाता है, के प्रवर्तक थे। गुरूजी ने भंडारपुरी में जहाँ अपने पंथ स्थल को संत समाज को प्रमाणित सत्य के शक्ति के साथ दिया था, वहाँ गुरूजी के वंशज आज भी निवासरत है। उन्होंने अपने समय की सामाजिक आर्थिक विषमता, शोषण तथा जातिवाद को समाप्त करके मानव-मानव एक समान का संदेश दिया। इनसे समाज के लोग बहुत ही प्रभावित थे।⬇️शेष नीचे⬇️

उन्होंने बताया कि सन 1672 में वर्तमान हरियाणा के नारनौल नामक स्थान पर साध बीरभान और जोगीदास नामक दो भाइयों ने सतनामी साध मत का प्रचार किया था। सतनामी साध मत के अनुयायी किसी भी मनुष्य के सामने नहीं झुकने के सिद्धांत को मानते थे। वे सम्मान करते थे लेकिन किसी के सामने झुक कर नहीं। एक बार एक किसान ने तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब के कारिंदे को झुक कर सलाम नहीं किया तो उसने इसको अपना अपमान मानते हुए उस पर लाठी से प्रहार किया जिसके प्रत्युत्तर में उस सतनामी साध ने भी उस कारिन्दे को लाठी से पीट दिया।⬇️शेष नीचे⬇️

यह विवाद यहीं खत्म न होकर तूल पकडते गया और धीरे धीरे मुगल बादशाह औरंगजेब तक पहुँच गया कि सतनामियों ने बगावत कर दी है। यहीं से औरंगजेव और सतनामियों का ऐतिहासिक युद्ध हुआ था। जिसका नेतृत्व सतनामी साध बीरभान और साध जोगीदास ने किया था। यूद्ध कई दिनों तक चला जिसमें शाही फौज निहत्थे सतनामी समूह से मात खाती चली जा रही थी। शाही फौज में ये बात भी फैल गई कि सतनामी समूह कोई जादू टोना करके शाही फौज को हरा रहे हैं। इसके लिये औरंगजेब ने अपने फौजियों को कुरान की आयतें लिखे तावीज भी बंधवाए थे लेकिन इसके बावजूद कोई फरक नहीं पड़ा था। लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि सतनामी साधों के पास आध्यात्मिक शक्ती के कारण यह स्थिति थी।          ⬇️शेष नीचे⬇️

चूंकि सतनामी साधों का तप का समय पूरा हो गया था उनमे अद्भुत ताकत और वे गुरू के समक्ष अपना समर्पण कर वीरगति को प्राप्त हुए। बचे हुए सतनामी सैनिक पंजाब,मध्य प्रदेश कि ओर चले गये। छत्तीसगढ़ मे संत घासीदास जी का जन्म हुआ औऱ वहाँ पर उन्होंने सतनाम पंथ का प्रचार तथा प्रसार किया। गुरू घासीदास का जन्म 1756 में बलौदा बाजार जिले के गिरौदपुरी में एक गरीब और साधारण परिवार में पैदा हुए थे। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात किया। जिसका असर आज तक दिखाई पड रहा है। उनकी जयंती हर साल पूरे छत्तीसगढ़ में 18 दिसम्बर को मनाया जाता है।     ⬇️शेष नीचे⬇️

गुरू घासीदास जातियों में भेदभाव व समाज में भाईचारे के अभाव को देखकर बहुत दुखी थे। वे लगातार प्रयास करते रहे कि समाज को इससे मुक्ति दिलाई जाए। लेकिन उन्हें इसका कोई हल दिखाई नहीं देता था। वे सत्य की तलाश के लिए गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड पर समाधि लगाये इस बीच गुरूघासीदास जी ने गिरौदपुरी में अपना आश्रम बनाया तथा सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए लम्बी तपस्या भी की।⬇️शेष नीचे⬇️

श्री वर्मा ने आगे कहा की गुरू घासीदास बाबाजी ने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को नकारा। उनका मानना था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक रूप से समान हैसियत रखता है। गुरू घासीदास पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे। वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे। सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। गुरू घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार उस वक्त लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे और गुरू घासीदास के अनुयायी थे।    ⬇️शेष नीचे⬇️

छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरू घासीदास के सिध्दांतों का गहरा प्रभाव था। गुरू घासीदास के संदेशों और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व नृत्यों के जरिए भी व्यापक रूप से हुआ। यह छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विधा भी मानी जाती है। श्री घश्याम वर्मा ने शिक्षा के सम्बन्ध में आगे जानकारी देते हुए बताया कि सत्गुरू घासीदास बाबा जी की सात शिक्षाएँ है, जिनमे  1 – सतनाम् पर विश्वास रखना, 2 – जीव हत्या नहीं करना, 3 – मांसाहार नहीं करना, 4 – चोरी, जुआ से दूर रहना, 5 – नशा सेवन नहीं करना, 6 – जाति-पाति के प्रपंच में नहीं पड़ना, 7 – व्यभिचार नहीं करना प्रमुख है।

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