पिता की गुहार : जिंदगी भर रहूंगा गुलाम भूपेश कका

गरियाबंद : पिता ज़मीर है पिता जागीर है जिसके पास ये है वह सबसे अमीर है,कहने को सब ऊपर वाला देता है पर खुदा का ही एक रूप पिता का शरीर है। देवभोग के सरगीगुड़ा गांव का यह मामला बेहद मार्मिक है। लया ठाकुर मात्र 25 साल की युवती है 7 साल कि उम्र मे लया बैल गाड़ी मे चढ़ कर खेल रही थी अचानक गिर पड़ी और बायां पैर की ऐड़ी टूट गई। बेटी की हालत देख पिता ने आनन फानन मे वैध के पास बेटी को लेकर पंहुचे वैध ने औषधि लगाकर वापस भेज दिया। हफ्तों भर बाद भी बेटी का दर्द कम नही हुआ।

अब बारी थी गरीबी के नावं मे सवार होकर अथाह गहरे संमदर जैसे मंहगे हास्पिटल के सफर का जांहा पिता मुसाफिर था और बेटी का ईलाज मंजिल लेकिन गरीबी का बेड़ा अक्सर मंजधार मे फंसी मिलती है।समय बितता गया और दर्द के 19 साल बीत गये तब तक लया ठाकुर विकलांग के श्रेणी मे आ चूकि थी। अब कमर भी बैठने लगा है पर डाक्टरों से पूछने पर पता चला ईलाज अब भी संभव है।

लया का ईलाज कराने 50 साल के पिता गुनसागर ठाकुर कभी धरमगड़ तो कभी भवानीपटना तो कभी रायपुर के हास्पिटल के चक्कर काट चूके हैं लेकिन ईलाज मंहगे होने के कारण खाली हाथ ही लौटना पड़ा जो कुछ भी जमा पूंजी था वो भी चला गया। लेकिन पिता तो पिता है उम्मीद लगाए अंतराज्यीय ठेकेदारों से संपर्क करना शुरू किया ताकि उनके पास जिंदगी भर बंधुआ मजदूर बन बेटी की ईलाज करा सके।

देश आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहा है। लेकिन अब भी समाज में कुछ ऐसी चीजें हो रहीं हैं जिससे दिल पसीज उठता है।परिवार से मिलने पर इस पेशकश ने मिडिया टीम को भी हैरत में डाल दिया। लया 10 वीं तक कि पढ़ाई भी कि है आगे और पढ़ना चाहती थी लेकिन हालात और परिस्थितियों ने लया के टूटे हुए ऐड़ी पर जंजीरो से जकड़ लिया। लया ठाकुर के परिवार मजदूरी कर अपना घर चलाते है एक दिन मां काम पे जाती है तो दूसरे दिन पिता अब लया को अकेले छोड़ा नहीं जाता ताकि और कोई समस्या खड़ी ना हो।

जिंदगी के इस कसमकस भरी परिस्थिति मे जिस समय 25 साल की लया ठाकुर का सूर्योदय होना था वह गरीबी और लाचारी के छायें हुए बादलों के धुंध मे ऐसी फंसी कि उसके आस्तित्व का सूर्य ही अस्त होता दिख रहा है। बेटी के परेशानियों का बोझ लिए 19 साल से एक मां और पिता दरबदर भटक रहे हैं क्या बित रहा होगा उनके मन मे सीने को चीर देने वाली ऐसे तकलीफों से कब मिलेगा लया ठाकुर को मुक्ति क्या वाकई में लया ठाकुर फिर से चल पायेगी और अपने स्वतंत्र पंख लेकर जींदगी के खुले आसमा मे उड़ान भर पायेगी कौन बनेगा इनका मशीहा जो लया के परेशानियों के चट्टानों को धूल में बदल कर रख दे। लया ठाकुर व पिती गुनसागर ठाकुर चाहते हैं कि शासन प्रसाशन उनके दुख कि इस घड़ी के चल रहे टिक टिक की कांटे को रोके और उनकी मदद करे और उन्हें एक नई जीवन दान दे।

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