( पाटन सेलूद से सुरेन्द्र शर्मा की खबर)
पाटन के ग्राम जमराव सहित अन्य गांव में कुषाण कालीन और प्राचीन सभ्यताओं के मिले प्रमाण /प्राचीन काल में यह क्षेत्र बहुत ही समृद्ध था
पाटन विधानसभा।पाटन ब्लाक के ग्राम जमराव पुरातात्विक उत्खनन क्षेत्र बीते वर्ष 2021 के सितंबर माह से खारून नदी के तट पर दूसरे टीले की खुदाई शुरू की गई है। जिसमें फिर से नए अवशेषों की प्राप्ति हुई हैं। अब तक चली खुदाई के दौरान यहां कुषाण कालीन सिक्के, पासे, मनके व मिट्टी के ठीकरे मिले हैं। जो लगभग दो हजार वर्ष प्राचीन है, इन पुरावशेषों के आधार पर “जमराव” स्थल की प्राचीनता लगभग दो हजार साल होना अनुमानित है। इससे पहले वर्ष 2019 के मई माह में प्रथम खुदाई में यहां मौर्यकालीन सभ्यता के भी अवशेष मिले थे तब पहले दिन नदी के बायीं ओर के छोटे टीले जिसका क्षेत्रफल लगभग 7600 वर्ग मीटर है के दक्षिणी हिस्से में उत्खनन का विन्यास तैयार किया गया था। लेकिन इस बार दूसरे टीले की खुदाई में 2000 साल पुराने कुषाण कालीन सिक्के और पा प्राप्त हुवे है, यहां टीलों में प्राचीन सभ्यता होने के संबंध में सर्वे किया जा रहा है उस दौरान ऊपरी सतहों पर कुषाण कालीन अवशेष प्राप्त हुए थे। जमराव के इस टीले पर करीब दो हजार साल पुरानी सभ्यता के अवशेषों की प्राप्ति के बाद तरीघाट ( पुरातात्विक स्थल जिला दुर्ग) के बाद यह इसी क्षेत्र में दूसरी सबसे पुरानी सभ्यता है। जमराव में जहां पर टीला है, वहां पर खारुन नदी के अंदर भी एक और टीला होना अनुमानित है। जो नदी में डूबा हुआ है। ज्ञात हो कि वर्तमान खुदाई पश्चात प्राप्त टीले के चारों तरफ़ पत्थर के परकोटे बने हुए हैं। खुदाई के दौरान सिंह, प्रतिमा व पासे मिले। ज्ञात हो कि कुषाण काल में लोग सिंह की पूजा करते थे। वहीं मनोरजन के लिए चौसर का खेल खेलते थे। आज जो लूडो के पासे है, वह दो हजार साल पहले भी हुआ करता था, जिसका प्रमाण यह से प्राप्त टेराकोटा से बना पासा है।, जिसमें बिंदु एक से लेकर छ: अंक तक अंकित है। यहां टीले के एक हिस्से में मिट्टी के बर्तन बनाने की भठ्ठी भी मिली है। भठ्ठा में खुदाई के दौरान मिटटी के बर्तन के साथ-साथ सुराही व मटका भी मिला है। जिससे अनुमानित है कि यहां खाद्य सामग्री को संग्रहित करने हेतु इस भट्ठे में मटके आदि बनाए जाते थे।, जमराव में जहां पर टीला है। वहां पर खारुन नदी के अंदर भी एक जमराव में जहां पर टीला है, वहां पर खारुन नदी के अंदर भी एक और टीला होना अनुमानित, जो नदी में डूबा हुआ है। यहां खारून नदी धनुषाकार रूप में मूडी हुई है। जिसके कारण इस पुरातात्विक स्थल का जायजा भाग नदी के अंदर अनुमानित है ।ज्ञात हो कि वर्ष 2019 के पहले चरण की खुदाई में मौर्य कालीन और कुषाण कालीन अवशेषों की प्राप्ति हुई थी। जिसमे कुषाण सिक्के, क्षेत्रीय सिक्के, एक मुखलिंग, लज्जा गौरी, बलराम संकर्षण की मूर्तियां, मृणमूर्तियां और सिलबट्टे आदि मिले थे तथा वर्तमान दूसरे चरण की खुदाई में में लूडो, सिंह, टेराकोटा से बने गाय, कुषाण कालीन सिक्के, मनके व मिट्टी के ठीकरे व अन्य अवशेषों कि प्राप्ति हुई है । पाटन के कई गांव जैसे कौही, तरीघाट, केसरा, जमराव, उफरा, पहंदा अ पंदर, बठेना, असोगा, आगेसरा, गुढ़ियारी, झीट, रुही आदि पुरातात्विक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। जहां 1500 से 2500 साल पुराने अवशेष भरे पड़े हैं। हजारों वर्ष पूर्व भी छत्तीसगढ़ में कुषाण कालीन और प्राचीन सभ्यताओं के मिलने से यह प्रमाण होता है कि प्राचीन काल में भी छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र बहुत ही अधिक समृद्ध रहा होगा ।
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