राजनांदगांव : जिला कांग्रेस कमेटी ग्रामीण व्यापार प्रकोष्ठ के अध्यक्ष सैय्यद अफजल अली ने कहा कि देश का किसान, व्यवसाय धर्म पर आधारित नहीं है, बल्कि विभिन्न समाज के किसान व्यापारी इस व्यापार से लाभान्वित होते हैं। ग्रामीण भारत में पशुधन सबसे अधिक तरल संपत्ति है और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के माध्यम से इसके व्यापार व्यवसाय को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, यह जीटीपी और रोजगार में योगदान देने वाले भारत के सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक है।
ईद उल अजहा का त्यौहार देश में लगभग 20 लाख छोटे किसान-व्यापारियों को रोजगार प्रदान करता है। यह व्यापार व्यवसाय देश के विभिन्न धर्म के व्यापारी करते हैं, जिससे देश के व्यापार व्यवसाय को गति मिलती है। ईदुल अजहा एक ऐसा त्यौहार जिसमें पैसा, जानवर के चारा खाने से लेकर ट्रांसपोर्ट का मेहनताना तक, सब गरीब देशी तबके के किसान लोगों के हाथ में जाता है। गांव में बकरा-बकरी पालन देश का सबसे गरीब तबका और गांव में रहने वाला व्यापारी वर्ग करता है।
ये वो एफडी है, जो हर ईदुल अजहा पर ये लोग कैश करवाते हैं। ईदुल अजहा यह एक इकलौता बड़ा त्यौहार है, जहां पैसा बाजार की बजाय गांवों की ओर आता है। बकरी पालन एक बड़ा आसान व्यापार है। गांवों में गरीबों के लिए भेड़-बकरियां एमटीएम की तरह होती हैं, जिन्हें वे जरूरत के समय बेचकर पैसा कमा सकते हैं। ईदुल अजहा (ईद) मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए व्यापार-व्यवसाय का बहुत ही अच्छा जरिया है।
इस कमाई से गांव में व्यवसाय करने वाले अपने बच्चों की पढ़ाई, नवयुवकों की शादी, परिवार के किसी बीमार व्यक्ति का सहारा बनता है। देश में बहुत से त्यौहार ऑनलाइन के माध्यम से बाजारुओं को फायदा पहुंचाते हैं। इस त्यौहार का विरोध करने वाले रोजगार के साधन व अन्य पहलुओं को भी देखें ये वही लोग कहते है जिन्हें गांव, किसान, कृषि और पशुधन अर्थव्यवस्था की समझ नहीं हैं। भारत की लगभग 50 प्रतिशत आबादी अपनी कृषि पर निर्भर है।
हर गांव में कई परिवार ऐसे होते हैं जिनकी कबीलदारी भेड़-बकरियों से चलती है, उनके लिए ईदुल अजहा का त्यौहार लॉटरी और खुशियों का त्यौहार होता है। ईदुल अजहा अकेला ऐसा त्यौहार जिसका फायदा किसी कॉरपोरेट, चीनी कंपनी या किसी एमएनसी को नहीं, बल्कि देश के आम आदमी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलता है।