रानीतराई :- अध्यात्म और दर्शन ऐसे रास्ते हैं जो आरंभ से ही मनुष्य को सोचने पर मजबूर करते हुए आए हैं। किंतु इन्हें लेकर अकसर कई शंकाएं रहती रहीं चाहे कोई कितना भी बड़ा ज्ञानी हो। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ने आध्यात्मिक ज्ञान को सच्चे अर्थों में सार्थक रूप से समझाया है। अध्यात्म को अंधविश्वास से दूर करके समाज को एक नई दिशा दी है। संत रामपाल जी महाराज ने सभी धर्मों के ग्रंथों को खोलकर उनके गूढ़ रहस्यों को सरल करके बताया है। इसके साथ ही उन्होंने नकली ढोंगी संतो और बाबाओं के ज्ञान की पोल खोलते हुए पूर्ण परमेश्वर, मनुष्य जीवन के उद्देश्य और शास्त्रों के वास्तविक अर्थों को स्पष्ट किया है।
संत रामपाल जी महाराज के सत्संग
सत्संग में सच्चे संत का संग मिले तो ही सार्थक है अन्यथा सब निरर्थक है। संत रामपाल जी महाराज ने ईमानदारी के साथ अध्यात्म, धर्म और दर्शन के साथ न्याय किया है। वर्तमान समय में धर्म की जिस सटीक परिभाषा और वैज्ञानिक आधार पर आवश्यकता थी वह संत रामपाल जी महाराज ने दी है। संत रामपाल जी महाराज के सत्संगों को सुनते समय कुछ वाणियां उनके मुख कमल से हम सुनते हैं। इनमें से कुछ वाणियां स्वयं परमेश्वर कबीर साहेब के मुख कमल से बोली गई हैं और कुछ संत गरीबदास जी महाराज द्वारा अमर सतग्रंथ साहेब से ली गई हैं। इनमें से कुछ प्रसिद्ध वाणियों के मायने यहां स्पष्ट किए गए हैं।
मनुष्य जीवन का महत्व
कबीर, मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम बार,
तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डार ||
अर्थ: संत रामपाल जी महाराज ने अपने सतसंगों में यह वाणी बोली है। इसके साफ मायने यह हैं कि मनुष्य जीवन का मिलना बहुत कठिन है क्योंकि यह बड़े ही शुभ कर्मों के पश्चात प्राप्त होता है और यह बार बार मिलना कठिन है। बेहतर है कि एक बार में ही इसका सदुपयोग किया जाए। मनुष्य जन्म बिलकुल पेड़ के पत्ते के समान है। जिस तरह वृक्ष से पत्ता टूटकर गिरता है और फिर उसका दोबारा उसी प्रकार वृक्ष पर लगना असंभव है वैसे ही मनुष्य जन्म भी एक बार खत्म होने के बाद दोबारा मिलना असंभव है। कबीर साहेब की इस वाणी माध्यम से संत रामपाल जी महाराज ने स्पष्ट रूप से मनुष्य जन्म प्राप्त लोगों को जगाने की चेष्टा की है और इसकी नश्वरता के बारे में आगाह किया है।”
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