भूख व कुपोषण से बचाए सरकार

भूख व कुपोषण से बचाए सरकार | डॉ. बिजेन्द सिन्हा जी का सम्पादकीय लेख “भूख व कुपोषण से बचाए सरकार। धार्मिक व भावनात्मक मुद्दों के बीच कुपोषण पर चिन्तन आवश्यक है। वर्तमान समय में विकास का अर्थ लम्बी चौड़ी व चमकती सडके गाडियाँ दूर संचार माध्यम कम्प्यूटर व आधुनिक सामग्री तक सीमित रह गया है। कुल मिलाकर सुख सुविधाओं व उपभोग की सामग्री से परिपूर्ण जीवन की सृष्टि। आम जनता के सरोकार गायब हो रहे हैं। विकास के इन प्रचलित रूपों व स्थाई रूप से छाये धार्मिक मुद्दों ने बीमारी गरीबी भूख व कुपोषण जैसी गम्भीर मुद्दों को पीछे धकेल दिया है।

कुपोषण से त्रस्त जनता व मासूमो के काल कवलित हो रहे माहौल में धर्म धारणा कैसें जीवंत होगा यह सोचने का समय है । शायद हम वह कार्य संस्कृति विकसित नहीं कर पाये जो मानवता को पोषित करती है या परहित सरिस धर्म नहि भाई को चरितार्थ करतीं हो ।कुपोषण आज देश की सबसे बड़ी समस्या बनी हुईं है । अधिकांश जनता आज कुपोषण का शिकार है ।इसमें भी बच्चे व महिलाएं सबसे अधिक कुपोषित हैं जिसके कारण वे असमय ही रोगों से ग्रसित व काल कवलित हो जाते बच्चों व महिलाओं के अधिकाँश रोगों का मूल कारण कुपोषण ही है ।

गौरतलब है कि गरीबी बीमारी भूख व कुपोषण जैसी गम्भीर समस्याओं का समाधान व मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कराना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। लम्बे समय तक शरीर को आवश्यक संतुलित आहार का न मिलना ही कुपोषण है ।   इसके कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाता है जिससे शरीर आसानी से बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। ग्लोबल हंगर इन्डेक्स यानि वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की जगह गिरती चली जा रही है ।साल 2022 में आई रिपोर्ट में भूख व कुपोषण के मामले में भारत 121 देशों मे 107 वें नम्बर पर था। साल 2023 में ग्लोबल हंगर इन्डेक्स यानि वैश्विक भूख सूचकांक जारी कर दिया गया है। जिसमे 125 देशों की सूची में भारत को 111वें पायदान पर रखा गया है जो देश में बढती भूख, भुखमरी व कुपोषण की एक बेहद गम्भीर स्थिति को दर्शाता है।

इस मामले में देश की स्थिति कितनी खराब है इसके अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत अपने पडोसी देश पाकिस्तान बांग्ला देश श्री लंका व नेपाल से काफी पीछे है।पडोसी देश पाकिस्तान बांग्ला देश नेपाल और श्री लंका भारत के मुकाबले कहीं अच्छी स्थिति में है।रिपोर्ट के अनुसार देश में 16.6 फीसदी आबादी कुपोषण का शिकार है ।वैश्विक भूख सूचकांक में भारत पहले से भी खराब हालत में है। पिछडने की स्थिति लगातार तीसरे साल तक बनी हुई है। ज्ञातव्य है कि इस कालखण्ड में धार्मिक मुद्दा छाया रहा।

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार हर साल भारत में कुपोषण के कारण पाँच साल से कम उम्र के मरने वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है और रिपोर्ट में बच्चों को खाना न मिलने के साथ ही खाने की बर्बादी का भी ब्योरा दिया गया है ।बढती गरीबी भूख, भुखमरी व कुपोषण कैसा भयावह रुप ले रही है यह वैश्विक भूख सूचकांक और संयुक्त राष्ट्र के इन रिपोर्टों के आधार पर देखा जा सकता है । देश की इस हकीकत को गम्भीरता से लेने की जरूरत है ।वर्तमान समय में धार्मिक व भावनात्मक मुद्दों को फोकस करने की कोशिश हो रही है ताकि आम जनता के बदहाली के सभी वास्तविक सवाल व मुद्दे दबे रहें।

आज भी समाज का बडा हिस्सा घोर विषमता व कुपोषण से अभिशप्त है। कुपोषण के मामले में आज भी देश बुरी स्थिति में है।छत्तीसगढ़ में भी कुपोषण की स्थिति चिन्ता जनक है। कुपोषण यहाँ की दूसरी सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। सबसे ज्यादातर बुरी स्थिति ट्राईबल इलाकों की है। ट्राईबल इलाकों के बच्चे ज्यादा कुपोषित हैं। भूख व कुपोषण के चलते अगर मासूमो को जान गंवानी पड रही है तो यह सोचने का वक्त है कि तमाम विकास की नीतियों व विकास के इतने लम्बे सफर में हमारी सफलता इतने दुखद क्यों है? विकास के नाम पर बडे- बडे उद्योगों की स्थापना व बडे-बडे बान्धो का निर्माण भले ही हो गया हो या हो रहा हो पर भुखमरी व कुपोषण की समस्या का समाधान नहीं हो पाया है।

सबसे गरीब इलाकों में आज भी बच्चे भुखमरी के कारण जान गंवा रहे हैं। गौरतलब है कि सरकार व समाज के भूख व कुपोषण की ओर ध्यान दे और इसके लिए जरूरी कदम उठाये जायँ तो असमय होने वाली इन मौतों को रोका जा सकता है, छोटे बच्चों का मुख्य आहार दूथ का सेवन है लेकिन पशुपालन मे आईं कमी व दूध के लगातार बढ़ते कीमत के कारण यह पर्याप्त मात्रा में बच्चों तक नहीं पहुँच पाता है। अतः इस ओर ठोस कदम उठाने की जरुरत है कुपोषण से न सिर्फ स्वास्थ्य पर असर पड़ता है बल्कि सामाजिक आर्थिक स्थिति भी खराब होती है। कुपोषण सिर्फ चिकित्सा का मामला नहीं है बल्कि वास्तव मेँ कुपोषण बहुत सारे सामाजिक व राजनीतिक कारणों का परिणाम भी है ।

सबसे गरीब परिवारों के बच्चों के लिए सरकारी स्कूलों में दोपहर के भोजन की तरह सुबह नाश्ते का इंतजाम करना चाहिए जिससे बच्चे कुपोषण से मुक्त हो सके। यह कुपोषण मुक्ति की दिशा में सार्थक कदम होगा। गरीब परिवारों के आय के स्रोत बढाने की योजना बने एवं उनको आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए। खाद्य सुरक्षा में व्यापक सुधार की जरुरत है। वर्तमान समय में खाद्य भंडारण तेजी से बढा है लेकिन असुरक्षित रखरखाव और भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं हो पाने के कारण खाद्य भंडारण का अधिकाँश अन्न खराब हो जाता है या नष्ट हो जाता है । फलस्वरूप जनता की भूख मिटाने के लिए इसका इस्तेमाल अपेक्षाकृत नहीं होता। इसके अलावा आधुनिक भोज पार्टीयो के कथित बफे सिस्टम में अन्न की बहुत बर्बादी होती है।

यह भी विचारणीय है कि एक ओर बच्चे भूख व कुपोषण से काल कवलित होते हैं वहीं दूसरी ओर इन भोज पार्टीयो में खाने को व्यर्थ फेंका जाता है। आधुनिक समाज की यह व्यवस्था मूलभूत विडम्बना व विषमता का संकेतक है। ज्ञातव्य है कि अनाथ घुमंतू बेसहारा व भीख मांगने वाले बच्चों व लोगों को पर्याप्त पोषक आहार नहीं मिलता है। जब देश का इक्कीस फीसदी बचपन कुपोषण से जूझ रहा हो तो आर्थिक भविष्य व उत्कृष्ट मानव संसाधन की बात निरर्थक है। आखिर कब हम समझेंगे कि हमारे ऐसे कठिन वक्त में जनता को खुद ही जागना होगा आर्थिक विषमता का परिणाम यह होता है कि खास लोग अपनी विलासिता एवं गैर-जरूरी चीजों पर जितना खर्च करते हैं वह पूरी जनसंख्या के बुनियादी स्वास्थ्य पोषण एवं शिक्षा व्यवस्था के लिए जरूरी खर्च से कहीं अधिक है।

पूर्ण रूपेण कुपोषण मुक्त समाज बनाना जटिल कार्य है लेकिन सरकार व जनता इसमे सहयोग दे तो यह कार्य मुश्किल नहीं है। कुपोषण की समस्या को जड से खत्म करने के लिए सरकार ,विपक्ष, समाज, धार्मिक व सामाजिक संगठन सभी को एकजुट होकर ठोस कदम उठाने चाहिए। सबसे अधिक जरूरत किसानों की है क्योंकि गरीबी भूख व कुपोषण को मिटाने के लिए कृषि पर पर्याप्त ध्यान देने की जरूरत है। अधोसंरचना विकास की तुलना में कृषि मे लगाई पून्जी अधिक प्रभावी हो सकता है। अगर हम चाहते हैं कि कोई भूखा न रहे ,कुपोषण का शिकार न बने तो हमें कृषि में निवेश को बढावा देकर पशुपालन व कृषि को प्रोत्साहित करना चाहिए।

अतः आज के समय में विकास का स्वरूप ऐसा हो जो एकांगी आर्थिक प्रगति एवं मूल्यविहीन फिजूल भोगवादी संस्कृति से मुक्त हो सके जिसमें व्यक्ति गरीबी भूख कुपोषण व अन्य मानवीय शोषण के दंश से पीड़ित न हो,यह तभी संभव है जब मनुष्य की भोगवादी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाकर भूखों व कुपोषित लोगों के प्रति लोगों को सहयोग सहकार व सहानुभूति के लिए प्रेरित किया जा सके। हमें यह अनुभव करना होगा कि मौजूदा परिवेश में सर्वाधिक आवश्यकता मानवीय संवेदना को विकसित करने की है। ऐसा होने से ही विकास की अन्धी दौड़ में पीडितो भूखेव कुपोषित लोगों के घोर निराशा एव अस्तित्व के संकट की समस्या का समाधान हो सकेगा और मनुष्य के समग्र एवं सार्थक विकास का पथ प्रशस्त होगा ।

B. R. SAHU CO-EDITOR
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B.R. SAHU CO EDITOR - "CHHATTISGARH 24 NEWS"

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