DR. BIJENADRA SINHA JI  का संपादकीय लेख *****राजनीति के चौसर पर श्री राम की महिमा *****

CG-24-NEWS-R :-   मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम प्रेम व समरसता के संदेशवाहक व आध्यात्मिक चेतना के संवाहक हैं । वे सामाजिक मर्यादाओ के पुरुषोत्तम हैं।श्री राम जी की महिमा का उपयोग आत्म उत्थान लोक कल्याण आत्मानुभूति व आध्यात्मिक उन्नति जैसे जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य के लिए होना चाहिए। उनका व्यक्तित्व विशाल महासागर की तरह है जिनका हर रूप मानव जीवन के हर पहलू के लिए अनुकरणीय हैं । कर्तव्यनिष्ठा, सदाचार, दृढ़निष्ठा ,प्रेम ,त्याग व जनसेवा आदि गुण उनके व्यक्तित्व का आधार था। आदर्श पुत्र, पिता, भाई,पति व मित्र के रूप में वे पूर्ण निष्ठा के साथ दायित्व निभाते हैं।
आज के सूखती मानवीय संवेदना व कमजोर पड़ रहे रिश्तो के दौर में श्री राम के पारिवारिक मूल्यों से परिपूर्ण व्यक्तित्व प्रासंगिक हैं। अगर हम राष्ट्रीय परिदृश्य में श्री राम के व्यक्तित्व को देखें तो वे महान लोकनायक थे । वे राजा होकर भी पूर्ण लोकतंत्रिक थे। उनहोंने जन सामान्य व समाज के अन्तिम पंक्ति के अन्तिम व्यक्ति की भावनाओं को महत्व दिया। जन-जन की आवाज को ऊँचाई प्रदान किया। जनसेवा को अपनी जीवन साधना बना लिया था। जनभावनाओ के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया। मतलब राम राज्य यानि प्रत्येक व्यक्ति का अपना राज्य । स्पष्ट है कि राम राज्य में राजतंत्र में भी पूर्ण लोकतंत्र था। आज के दौर में जब लोकतंत्र का आधार जनता का न होकर षडयंत्रों व सत्ता के लिए राजनीतिक गठजोड़ तक सीमित रह गया है । ऐसे में श्री राम का पूर्ण लोकतंत्रिक व्यक्तित्व अनुकरणीय हैं। वर्तमान समय में जब राजनीति विमर्ष न होकर सत्तालोलुपता के कारण छीना-झपटी का खेल बन गयी है । राजनीति निरन्तर सत्ता केन्द्रित होती जा रही है। ऐसे माहौल में श्री राम के त्यागमयी व्यक्तित्व प्रेरणादायक व अनुकरणीय हैं, जब वे त्याग की पूर्ण पराकाष्ठा के साथ राजसत्ता व वैभव को सहजता से त्याग देते हैं।
विजयादशमी पर्व पर यह भी सन्दर्भित है कि श्री राम को विजय के लिए कुछ विशेष नहीं करना पड़ता है। श्री राम पैदल हैं लेकिन विजय रथ उनके पास है। धर्म, मर्यादा की अभिव्यक्तिया ही उनका विजय रथ है। मर्यादा से ही विजय और कीर्ति प्रदान होती है। नीति मर्यादा के बिना समाज का व्यवस्था क्रम चलना असम्भव है। मर्यादा का उल्लंघन होते ही ध्वंस की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। आज संवेदनहीनता, आक्रमकता, दुष्कर्मो,दुरव्यसन व अपराधों का भयानक रूप पूरी समर्थता के सहारे दैत्यों दानवों की तरह बढा है। कुचक्रों षडयंत्रों और छल प्रपंचों की करतूत दिनो दिन बढती चली जा रही है। हमारी जिंदगी एवं सामाजिक परिवेश मे इन अनैतिक तत्वों का संयोग और समावेश तीव्र नैतिक पतन पैदा कर रहा है। आज सर्वाधिक आवश्यकता दानव रुपी इन दूषित प्रवृत्तियों का महाविनाश कर इन दूषित प्रवृत्ति से मुक्त होने की है। श्री राम के गुण व आचरण के अनुकूल मर्यादा रखने व उनके आदर्शो व गुणों फैलाने की जरूरत है। उन्होंने जीव जन्तुओ समेत समाज के सभी वर्गों के लोगों का उत्थान किया। स्पष्ट है कि श्री राम का समग्र व समावेशी व्यक्तित्व समाज में विषमता को मिटा कर एक सूत्र में बन्धने व एकता समता और मिलजुलकर रहने की प्रेरणा देता है। राम राज्य की चर्चा इन दिनों बहुत हो रही है परन्तु वास्तव में राम राज्य की स्थापना उसी दिन हो गयी थी जिस दिन भगवान श्री राम राजपद, वैभव और समस्त साधनों, सुख सुविधाओं को त्यागकर कण्टक मार्ग से वन को चले गए। राम राज्य की गरिमा को बनाये रखना हमारे सद्व्यवहार व सद्भावना पर निर्भर करता है।

*** राम राज्य के पहले प्रेम राज्य होना चाहिए***

आपका अपना
सेवाभावी शुभचिंतक बिजेन्द सिन्हा
निपानी-पाटन-दुर्ग।

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B. R. SAHU CO-EDITOR
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