राम वन-गमन पदयात्रा पर निकले मनोज चतुर्वेदी का बैकुन्ठपुर कुमार साहब चौक में ढोल नगाड़ा बजवाकर और पटाखा फोड़कर धूमधाम से जोरदार स्वागत किया गया तेज तर्रार नेता प्रतिपक्ष अन्नपूर्णा प्रभाकर सिंह व सर्मथको ने कुमार साहब चौक पर किया गया पुष्पवर्षा
कोरिया/पिता सेे वनवास का आदेश पाकर प्रभु श्रीराम चन्द्र जी जिन राहो पर गुजरकर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान बने आज एमसीबी जिले का एक युवा उनके त्रेता युग में तय किये गये मार्गो पर चलने का निर्णय किया है वही एमसीबी जिले का युवक मनोज चतुर्वेदी आज कोरिया जिला मुख्यालय कुमार साहब चौक बैकुन्ठपुर पहुॅचे।जहां नगर पालिका नेता प्रतिपक्ष अन्नपूर्णा प्रभाकर सिंह ने समर्थकों व शहरवासियो के साथ पुष्प वर्षा कर उनका जोरदार स्वागत किय। इस दौरान नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि इस आधुनिक युग के सांसारिक मोह माया को छोड़कर हम सभी को यह संदेश दे रहे हैं कि ईश्वर की शरण में ही सब कुछ है । स्वागत कार्यक्रम के दौरान वेदांती तिवारी,आशीष डाबरे,अजीत लकड़ा,राजीव गुप्ता,प्रभाकर सिंह,विजय प्रजापति,ननकू महाराज,अर्पित गुप्ता,वैभव सिंह,सौरभ गुप्ता, साजिद उस्मानी,मन्नू गुप्ता, अंकित गुप्ता लवी,रोहित डाबरे, दिनेश दुबे,रवि राजवाड़े,प्रमोद सिंह,प्रखर जायसवाल,मयंक गुप्ता,प्रशांत प्रताप सिंह,सुनील शर्मा,लाल दास महंत,अंकित गुप्ता,नंदू प्रजापति, संगीता राजवाड़े,आशा महेश साहू,चांदनी सोनी,लक्ष्मी सिंह, उषा सिंह,
मान्यता के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम चन्द्र माता सीता व छोटे भैया लक्षमण संग छत्तीसगढ़ के सीतामढ़ी-हरचौका से प्रवेश किया।भरतपुर के पास स्थित यह स्थान मवई नदी के तट पर है। यहां गुफानुमा 17 कक्ष हैं जहां रहकर श्रीराम जी ने भगवान शिव की आराधना की। हरचौका में कुछ समय बिताने के बाद वे मवई नदी से होते रापा नदी पहुंचे। यहां से सीतामढ़ी घाघरा पहुंचे। कुछ दिन यहां रुकने के बाद घाघरा से कोटाडोल पहुंचे। यहां से नेउर नदी तट पर बने छतौड़ा पहुंचे, जहां भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने पहला चातुर्मास बिताया।
रामगढ़ – स्थानिय लोगो का कहना है कि छतौड़ा आश्रम से देवसील होकर रामगढ़ की तलहटी से होते तीनों सोनहत पहुंचे। यहीं पर हसदो नदी का उद्गम होता है। इसके किनारे चलते हुए तीनों अमृतधारा पहुंचे। यहां कुछ दिन रहने के बाद जटाशंकरी गुफा फिर बैकुंठपुर होते पटना-देवगढ़ पहुॅचे। आगे सूरजपुर में रेण नदी के तट पर पहुंचे। फिर विश्रामपुर होते अंबिकापुर पहुंचे। पहले सारारोर जलकुंड फिर महानदी तट से चलते हुए ओडगी पहुंचे। यहां सीताबेंगरा और जोगीमारा गुफा में दूसरा चातुर्मास यानी 4 माह बिताया।
लक्ष्मणगढ़-धर्मजयगढ़ ओडगी के बाद हथफोर गुफा से होते तीनों लक्ष्मणगढ़ पहुंचे। फिर महेशपुर में ऋषियों का मार्गदर्शन लेते चंदन मिट्टी गुफा पहुंचे। रेणु नदी के तट से होते हुए बड़े दमाली व शरभंजा गांव आए। यहां से मैनी नदी व मांड नदी तट से होते देउरपुर आए। रक्सगंडा में हजारों राक्षसों का वध किया। फिर किलकिला में तीसरा चातुर्मास बिताया। राम धर्मजयगढ़ पहुंचे। इसके बाद अंबे टिकरा होते हुए चंद्रपुर आए। इस तरह सरगुजा व जशपुर क्षेत्र में तीन साल व्यतीत की सीतामढ़ी से आगे प्रवेश करते ही दंडकारण्य के घनघोर जंगल में राक्षसों का जमावड़ा रहा करता था। इनमें सारंधर,दमाली, रक्सगंडा,राकसहाड़ा आदि प्रमुख थे। इन राक्षसों के नाम से ही कुछ गांव के नाम भी यहां मिलते हैं। छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान प्रभु राम जी विश्राम की प्रमुख स्थल थे जहां उन्होंने या तो विश्राम किया या फिर उनसे उनका कोई रिश्ता जुड़ा। आज यह स्थान धार्मिक रूप में राम की वन यात्रा के रूप में याद किए जाते हैं।
दरअसल कौशल प्रदेश उत्तर भारत के इलाके को कहा जाता है और दक्षिण कौशल वर्तमान छत्तीसगढ़ के हिस्से को कहा जाता है.दक्षिण कौशल के राजा भानुमांत की बेटी कौशल्या का उत्तर कौशल के दशरथ राजा के साथ विवाह हुआ था.इसलिए छत्तीसगढ़ में आज भी बहगवान राम को भांजा कहा जाता है.वहीं माता कौशल्या का जन्म स्थान राजधानी रायपुर से 30 किलोमीटर दूर चंदखुरी गांव को माना जाता है. इसी गांव में तालाब के बीच दुनिया का इकलौता माता कौशल्या का मंदिर है.इस मूर्ति में राम लल्ला माता कौशल्या के गोद में खेल रहे हैं.कहां है दंडकारण्य?
रामायण के मुताबिक भगवान राम ने वनवास का वक्त दंडकारण्य में बिताया। छत्तीसगढ़ का बड़ा हिस्सा ही प्राचीन समय का दंडकारण्य माना जाता है। कि वनवास के वक्त भगवान श्री राम जी यहीं रहे।