डॉ. बिजेन्द सिन्हा जी का संपादकीय लेख, “टूटते परिवार, बढ़ते तलाक समाज के लिए चिंताजनक”

रानीतराई : व्यक्ति के जीवन में परिवार की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है ।मानव सभ्यता का विकास परिवार बसाने और उसकी आवश्यकता पूरी करने,उसके सदस्यों के विकास की चिंता करने से आरम्भ होती है। गृहस्थ धर्म के शाश्वत महत्व एवं वर्तमान प्रासंगिकता को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। विवाह हमारे सभी संस्कारों में एक संस्कार है। परिवार के अपनेपन से भरे पूरे इस माहौल में प्रेम,त्याग,सहयोग,आज्ञापालन व अनुशासन जैसे गुणों का अभ्यास एक सुखद व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं यहाँ बच्चों को स्वाभाविक रूप से उत्तम संस्कार मिल जाते हैं।

परन्तु आज परिवार संस्था विकट व दुख भरे दौर से गुजर रही है। संयुक्त परिवार निरन्तर कम होते जा रहे हैं। इस पारिवारिक विघटन की झलक हम बढते हुए तलाको की संख्या से देख सकते हैं। यौन संबंधों की उच्छृंखलता व सारी मर्यादाओं को पार करने वाली उच्छन्दता ने पारिवारिक मूल्यों को नष्ट भ्रष्ट कर दिया है। निश्चित ही सामाजिक जकड़न कम होने चाहिए लेकिन मानवीय गरिमा का उल्लंघन भी नहीं होना चाहिए। पारिवारिक विखण्डन की सबसे बड़ी जीवन का विलासी बनते चले जाना है।

आधुनिक शहरों में परिवारों के टूटने बिखरने का दौर वहाँ की उपभोक्ता वादी संस्कृति से शुरू हुआ। व्यक्तिगत स्वतंत्रता,उन्मुक्तता व उच्छृंखलता के चलते परिवार संस्था का अंतहीन टूटन का सिलसिला चल पडा। मौजूदा दौर में पारिवारिक मूल्यों व नैतिक जीवनचर्या के स्तर में गिरावट आई है। लिव इन रिलेशनशिप इन्हीं घटती पारिवारिक मूल्यों का परिचायक है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता व मौलिक अधिकारों की आड में यह व्यवस्था मानवीय गरिमा व पारिवारिक मूल्यों का उल्लंघन है जो अपनी संस्कृति के विरुद्ध अप संस्कृति को जन्म देती है।

एक दौर था जब वैवाहिक जीवन धर्म,मर्यादा,संयम,त्याग सामन्जस्य एवं सहनशीलता का परिचायक था इन गुणों के समावेश से वैवाहिक जीवन सुख समृद्धि और विकास का आधार बनकर गृहस्थ जीवन चलता था। जहाँ वैवाहिक जीवन में प्रेम व आत्मीयता के विस्तार के साथ सामाजिक समरसता का आधार भी रहता ।लेकिन लिव इन रिलेशनशिप व्यवस्था में सहज स्वाभाविक प्रेम,आत्मीय रिश्ते गौण व यौन स्वातंत्र्य व उपभोक्तावादी प्रवृत्ति अधिक परिलक्षित होता है। आधुनिक समाज की यह नवीन अवधारणा मानवीय मर्यादाओं का उल्लंघन है। ऐसी ही अपसंस्कृति ने वैवाहिक व गृहस्थ जीवन को नष्ट भ्रष्ट कर रहा है। इस तरह का सह जीवन जब मन करे साथ रहो और बाद में अलग हो जाने की छूट देता है।

उस स्थिति में किसी का किसी के प्रति नैतिक दायित्व नही बनता। न आपस में न बच्चों के प्रति। ये प्रवृत्तिया परिवार संस्था पर संकट की द्योतक हैं जो परिवार निर्माण में बाधक है। ऐसी जीवन चर्या से अपराध बढ रहे हैं। आए दिन लिव इन रिलेशनशिप में आपराधिक काण्ड होते देखे जा सकते हैं। अति आधुनिकरता,भौतिकता के साथ सांथ पनपा यह पारिवारिक व नैतिक पतन व तलाक़ की घटनाए अब शहरों से गांव की ओर बढ रही है।

मौजूदा परिवेश में तलाक के मामले तेजी से बढ रहे हैं जोकि पारिवारिक विघटन का सूचक है। अभी हाल ही में तलाक़ के मामले में माननीय केरल हाईकोर्ट की टिप्पणी आईं हैं कि यूज एन्ड थ्रो कल्चर यानि इस्तेमाल करो और फेंक दो की संस्कृति ने समाज को बर्बाद किया। नयी पीढ़ी शादी को बुराई के मानतीं है।वह शादी को हमेशा के लिए चिंता समझती है। जबकि शादी हमेशा के लिए समझदारी का निवेश था। वह लिव इन रिलेशनशिप मे रहना ज्यादा पसन्द करती हैं ।तलाक से बच्चों पर बुरा असर पड़ता है।

शादी टूटने से क ई ज़िन्दगियाँ बरबाद होती हैं। जैसे गम्भीर,विचारणीय व प्रेरणा दायक बातें कही हैं ।ऐसे में पारिवारिक मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा ही एकमात्र विकल्प बचा है। वह लिव इन रिलेशनशिप में रहना ज्यादा पसन्द करती हैं। तलाक़ से बच्चों पर बुरा असर पड़ता है। शादी टूटने से क ई ज़िन्दगियाँ बरबाद होती हैं। जैसे गम्भीर,विचारणीय व प्रेरणा दायक बातें कही हैं। ऐसे में पारिवारिक मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा ही एकमात्र विकल्प बचा है। केरल जैसे समृद्ध व शिक्षित राज्य में तलाक के बढते मामले से स्पष्ट है कि समाज में शैक्षिक,आर्थिक उत्थान के साथ नैतिक उत्थान भी जरूरी है।भौतिकता की अति वृद्धि के बाद तलाक़ का दुष्परिणाम यह है कि तलाक़ के बाद बच्चे अपने विकास के साथ जो शारीरिक,मानसिक व भावनात्मक कष्ट भोगते हैं वह समाज में कई सवाल खडे करते हैं। यह मनोरोग विशेषज्ञों के लिए भी शोध का विषय है। न्यायालयों में दाम्पत्य संबंधी विवाद के मामले में वृद्धि पारिवारिक मूल्यों में आईं गिरावट का प्रमाण है। वहीं पारिवारिक झगडे निपटाने के लिए परिवार न्यायालय,मेरिज बयूरोव परिवार सलाह केन्द्रो की संख्या बताती है कि समाज में पारिवारिक संकट बढने लगा है।

भौतिकता व उपभोक्तावाद की आन्धी हमारी संस्कृति व संस्कारों को ध्वस्त करने पर तुली हुई है आधुनिक जीवन शैली होनी भी चाहिए लेकिन अति आधुनिकता के चक्कर में हम अपने मूल संस्कारों को ही भूलते चले जा रहे हैं ।हमारे आदर्श एवं जीवन मूल्य बिखर रहे हैं न्यक्लियर फैमिली यानि एकल परिवार के घटते पारिवारिक मूल्यों के कारण सर्वाधिक परेशानी वृद्ध स्त्री पुरुषों को हो रही है। शिक्षित समाज में भी अधिकाँश वृद्ध स्त्री पुरुष वृद्धाश्रम में रहने के लिए मजबूर हैं।जो घटते मानवीय संवेदना का परिचायक है। तलाक़ के बाद परित्यक्त स्त्री पुरुषों की बढती संख्या भी समाज के लिए खतरा है। जो सामाजिक सुव्यवस्था मे बाधक है परिवार निर्माण आज की महती आवश्यकता है। आदर्श परिवार की पुनर्स्थापना के लिए नैतिक व पारिवारिक शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण है।

जिसकी आज सर्वाधिक आवश्यकता है। मौजूदा दौर में संयम,समझौता,आत्मीय रिश्ता,सहिष्णुता व सामन्जस्य जैसे सद्गुणों की आवश्यकता है जिससे न सिर्फ कलह से मुक्त रह सकते हैं बल्कि परिवार में शान्ति,समरसता व समृद्धि ला सकते हैं ।संस्कारयुक्त परिवार से ही संस्कार युक्त पीढ़ी का निर्माण सम्भव है। स्वच्छंद यौनाचार के नियन्त्रण,बच्चों व बुजुर्गों की जिम्मेदारी व सामाजिक सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रधान तया विवाहसंस्था को बचाये रखने की आवश्यकता है। दूरगामी भविष्य के लिए पारिवारिक जीवन में भौतिक सुधार करके संवेदना एवं संस्कारों को बढावा देकर परिवार निर्माण की ओर एक सामयिक व सार्थक कदम बढा सकते हैं। जिससे समाज व राष्ट्र को सभ्य,समृद्ध व शक्तिशाली बनाया जा सके।

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B. R. SAHU CO-EDITOR
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B.R. SAHU CO EDITOR - "CHHATTISGARH 24 NEWS"
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