रानीतराई :- राजनैतिकदलों की स्थापना उच्च आदर्शों ,नैतिक मूल्यों और व्यापक जनहित के मुद्दों को लेकर होता है। राजनीति विभिन्न विषयों पर विमर्श व जनसेवा का सशक्त माध्यम भी है। परन्तु बदलते समय के साथ राजनीति में विकृतिया आती गयी।
सत्ता केन्द्रित होती जा रही राजनीति के कारण सत्ता प्राप्ति के लिए अनेक तरीके अपनाये जाने लगे। धन बल,बाहुबल, राजनैतिक जोड-तोड़, षडयंत्र, जातिगत ध्रुवीकरण, धार्मिक ध्रुवीकरण, प्रान्त व क्षेत्रवाद जैसे भावनात्मक तरीके अपनाये जाने लगे अपनाये जाने लगे। सत्ता के सामने आदर्श, मूल्य, विचारधारा सब तुच्छ होते गये। इस तरीके से राजनैतिक जीत हासिल करना सच्ची सफलता नहीं कही जा सकती ।आम आदमी के लिए चुनावी जीत हासिल करना मुश्किल प्रतीत होता है। जाति व धर्म की राजनीति से अब युवा वर्ग उबने लगा है। वह जवाबदेही को आधार बनाता है। निश्चित ही जवाबदेही को आधार बनाना चाहिए। युवा वर्ग सिर्फ और सिर्फ विकास को पैमाना बनाकर अपना कीमती वोट देना चाहते है।
अतः राजनीति में नये युग की शुरुआत समय की मांग है। आज भी हम जाति, धर्म, सम्प्रदाय, प्रान्त व क्षेत्रवाद के पूर्वाग्रह के विचार से हटकर स्वतंत्र विचार शैली विकसित करनी विकसित करने मे हम सफल नहीं हो रहे है ।संविधान सबको समान नजर से देखता है। क्षेत्रवाद भी समता व एकता के लिए बाधक है।जाति, धर्म,सम्प्रदाय, प्रान्त व क्षेत्रवाद के पूर्वाग्रह के विचार से मुक्त होकर स्वतंत्र विचार शैली विकसित करने की जरूरत है। चुनाव के समय हमको जाति,धर्म सम्प्रदाय ,प्रान्त व क्षेत्रवाद की भावनाओं से हटकर समाज व देश हित को ध्यान में रखते हुए अपनी चेतना व जागरूकता का परिचय देना चाहिए। अब समय आ गया है कि अपनी संकुचित सोच के दायरे से बाहर निकले।हम उन लोगों को पहचाने जो धर्म ,जाति, सम्प्रदाय, प्रान्त व क्षेत्र के नाम पर बाँट कर अपना राजनैतिक लाभ लेते है बाँटने की राजनीति से कुछ लोगों को राजनीति लाभ तो मिल जाता है परन्तु समाज में विभेद-विभाजन की दुखद दीवारें खड़ी हो जाती है। जिसका सीधा असर सामाजिक सौहार्द्रता पर पडता है। अब समय आ गया है कि हम अपनी संकुचित सोच के दायरे से बाहर निकले।चुनाव का समय जाति,धर्म, सम्प्रदाय,प्रान्त व क्षेत्रवाद की भावनाओं में न बहते हुए देश व समाज हित को ध्यान में रखते हुए आत्मनिरीक्षण का समय है कि इन वर्षों में प्रगति के कितने सोपान तय किये है। कितना विकास हुआ है। गौरतलब है कि विकास का पैमाना सिर्फ साधनो व सुविधाओं की बहुलता से ही न हो। ।सिर्फ भौतिक व अधोसंरचना विकास काफी नहीं है। मूल्यों व मुद्दों आधारित होना चाहिए। यह भी विचारणीय है कि किन अर्थों में हम पिछडे हुए है। कुपोषण, असुरक्षा, यौनहिंसा,विषमता, हिंसा व अपराधीकरण जैसे गम्भीर मुद्दों को राजनैतिक दलों को अपने प्राथमिक एजेण्डे में शामिल करना चाहिए ।जनहित को ध्यान में रखते हुए
शराबबन्दी को भी राजनैतिक दलों को अपने प्राथमिक एजेण्डे में शामिल करना चाहिए ।सामाजिक न्याय की दिशा में कदम बढाने की जरुरत है। यह भी विचारणीय है कि वे कौन से गुण है जिसके कारण हम आगे बढे है। हमारे तन्त्र में ऐसी कौन सी खामियां है जिसके कारण विकास अवरुद्ध हो रहा है। वे कौन से मुद्दे है जो उभर कर सामने आए है जिन्हें सुलझाने की आज जरूरत है। यह भी विचारणीय है कि राज्य में कितना विकास हुआ है। अपनी आजादी के बाद लोकतंत्र को हम किन अर्थों स्थापित कर रहे है। अपराधों में निरंतरवृद्धि,दुष्कर्म की बढती घटनाए ,अपराधों पर अंकुश न लग पाना और दुरव्यसन की बढती प्रवृति के निराकरण पर भी सरकार, समाज, युवा वर्ग व राजनैतिक दलों को विचार करना चाहिए ।क्या हममें नैतिक साहस है कि धर्म ,जाति ,सम्प्रदाय, प्रान्त ,क्षेत्रवाद व अपने निहित स्वार्थों से उपर उठकर राजनीति में नये युग की शुरुआत करते हुए नये भारत का निर्माण करें।
हम गम्भीरता से विचार करें कि इन गम्भीर समस्याओं के से जनता का हित, अपराधमुक्त व दुरव्यसन मुक्त समाज का निर्माण होगा।
निष्पक्ष, स्वतन्त्र व न्याय पूर्ण शासन व्यवस्था के मजबूत होने से सभी वर्ग की जनता लाभान्वित होगी। ऐसा शासन तंत्र विकसित हो जिसमें जाति वर्ग, सम्प्रदाय, क्षेत्रवाद, धर्म, मत,पंथ आदि विभाजक रेखाओं का कोई स्थान न हो। ऐसी शासन व्यवस्था हो जो हर परिस्थिति में सभी वर्ग की जनता के प्रति जवाबदेह हो,जनहित सर्वोपरि होना चाहिये।
Breaking News