यौन हिंसा के बढ़ते मामले सभ्य समाज पर कलंक

डॉ. बिजेन्द सिन्हा का संपादकीय लेख : वर्तमान समय में जहाँ विज्ञान तकनीकी व आधुनिक विकास के नये कीर्तिमान कायम किये जा रहे हैं मगर दूसरी ओर कः ई जगहों पर हो रही दुष्कर्म और हत्याएँअत्यंत चिन्ता जनक है। इन दिनों दुष्कर्म अपहरण व हत्या जैसे अपराध का अपेक्षाकृत अधिक विस्तार हो रहा है । आज चारों ओर बलात्कार अपराध दुराचार एवं हिंसा-प्रतिहिंसा की घटनाएं हो रही है तथा परिणामस्वरूप टूटते-बिखरते परिवार इसी का प्रमाण है।



मौजूदा परिवेश में ऐसे अपराधो से संबंधित मामले जिस तरह से सामने आ रहे हैं वे इस तथ्य का प्रमाण है कि समाज में यौन उत्पीड़न बलात्कार हत्या व यौन हिंसा के मामले तेजी से बढ रहे हैं। जिस तेजी से इन अपराधों में वृद्धि हो रही है उसे देखते हुए लगता है कि प्रगति के नाम पर हम अवनति की ओर अग्रसर हो रहे हैं दुष्कर्म जैसे मामले महिलाओं को मानसिक रोगी बना रहे हैं। अमानवीयता की सारी हदे पार हो जाती है जब नाबालिग लड़कियों बच्चियाँ यौन उत्पीड़न का शिकार हो जाती है। हत्या दुष्कर्म और अन्य अपराध समाज में जीवन मूल्यो के ध्वस्त होने के प्रमाण हैं।



सभ्य समाज में यह एक मानसिक बीमारी है जिससे पीडित लोग ऐसे जघन्य कृत्यों को अंजाम देते हैं। सामूहिक दुष्कर्म ,दुष्कर्म व दुष्कर्म के बाद हत्या या घायल अवस्था में छोड़ देना आम बात हो गयी है । अनाचार व हिंसक अपराधो के चलले अगर बेटियों को जान गंवानी पड रही है तो तमाम विकास की नीतियों , दावों व सामाजिक विकास के इतने लम्बे सफर में हमारी ऐसी सफलता को दुखद ही कहा जा सकता है।



ऐसी अमानवीय व दुखद घटनाए जब होती हैं तो हमारी सारी मानवीय प्रगति धरी की धरी रह जाती है। यह सोचने का समय है। ऐसी घटनाए अधिकतर गरीब व निम्न वर्ग के साथ होते हैं। राष्ट्र व राज्य मे विकास का सारा जोर भोतिक निर्माण पर हो रहा है। विकास की अवधारणा सिर्फ भौतिक विकास व साधनों सुविधाओं तक सीमित होता जा रहा है ।ऐसा विकास अधिक मायने नहीं रखता जहाँ जीवन मूल्यों का कोई स्थान न हो। नैतिक मूल्यों व सामाजिक विकास नीतियों पर गौर करने की जरुरत नहीं समझी गयी। व्यभिचार के व बलात्कार के विरूद्ध कडे कानून हैं। इस प्रतिबन्ध के बाद भी रोकथाम के बजाय अपराधो का विस्तार हुआ है जो निराशाजनक है।



कानून व्यवस्था के साथ साथ जब तक दोषियों के मनोविज्ञान को समझकर इनके सुधार का रास्ता नहीं निकाला जा सकता तब तक समाज में यौन हिंसा व यौन अपराध को खत्म करना मुश्किल होगा। ऐसे नैतिक रूप से भ्रष्ट घटनाए संवेदनहीनता व अमानवीय ता का परिचायक है व मानवता को कलंकित करता है। नयी पीढ़ी को दिशा देने व इन घटनाओं पर चिन्तन करने की जरुरत है। विचारों मे परिवर्तन लाने की भी जरूरत है। नैतिकता व मानवीय पुनरुत्थान आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इनकी अवहेलना के कारण ही समाज में आपराधिक घटनाए जैसी क ई समस्याएं खडी होने लगती हैं ।अपराध वृद्धि की समस्या भी इसी से जुड़ी हुई है। इन मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा होने के साथ ही समाज में अपराध कम होते जाएगे अतः मानवीय मूल्यों की गरिमाबनी रहे।

B. R. SAHU CO-EDITOR
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B.R. SAHU CO EDITOR - "CHHATTISGARH 24 NEWS"

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