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रानीतराई महाविद्यालय : बिरसा मुंडा ने शोषण के खिलाफ शंखनाद किया-सावर्णी।
रानीतराई :- स्व. दाऊ रामचंद्र साहू शासकीय महाविद्यालय रानीतराई में ”जनजातीय समाज का गौरवशाली इतिहास” कार्यक्रम का आयोजन प्राचार्य डॉ. आलोक शुक्ला के मार्गदर्शन में किया गया। कार्यक्रम की शुभारंभ बिरसा मुंडा तथा सरस्वती माता के चित्रों पर पुष्पार्पण, दीप प्रज्वलन तथा सरस्वती वंदन से हुआ। प्रथम सत्र में व्याख्यान आयोजित किया गया। कार्यक्रम प्रभारी श्रीमती अंबिका ठाकुर बर्मन के द्वारा संचालन किया गयाकार्यक्रम के मुख्य वक्ता भास्कर सवर्णी साहित्यकार पाटन ने कहा-हमारे जनजाति समाज के सम्मान के गौरवशाली, इतिहास के बारे में हर आदिवासी देशभक्त को छोड़ने वाली बात है जो आदिवासी समाज को भुला दिया। महान सम्राट अशोक जिन्हें भारत सरकार ने अशोक के चिन्ह को राष्ट्रीय चिन्ह बनाया। इसी तरह समुद्रगुप्त एवं चंद्रगुप्त का नाम भी आते हैं। उनके शासन काल को स्वर्ण युग कहा जाता था। जनजाति समाज देश का सबसे पिछड़ा समाज माना जाता है। बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के जननायक के रूप में जाना जाता है, उन्हें भगवान का दर्शन दिया जाता है। बिरसा मुंडा ने बहुत कम आयु में ही समाज के बारे में सोचा और संघर्ष किया। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नंबर 1875 को बिहार के पुली हाथों गांव जिला रांची में हुआ था। जो आप झारखंड राज्य में सम्मिलित है। इन्होंने हिंदू और ईसाई धर्म दोनों की शिक्षा ली। बिरसा मुंडा को 25 साल में ही आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक शोषण का काफी ज्ञान हो गया था। बिरसा मुंडा ने अल्प आयु में ही अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों को एकत्रित कर विद्रोह का सूत्र तैयार कर लिया और उन्हें आवाज उठाने की राजनीति सिखाई बिरसा मुंडा हमेशा अपनी संस्कृति और धर्म को बचाना और बरकरार रखना चाहते थे उन्होंने मुंडा परंपरा और सामाजिक संरचना को नए जीवन दिया स्थानीय की सुरक्षा की राजनीतिक लड़ाई का एक रूप था। इसलिए बिरसा मुंडा को न केवल झारखंड में बल्कि समाज और राष्ट्र के नायक के रूप में देखा जाता है।
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