ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनीं ‘बैंक वाली दीदी’- अमिता साहू

गरियाबंद : बीसी योजना गांवों और शहरों दोनों में 24 घंटे बैंकिंग सेवाएं प्रदान कर रही है। इसमें विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली हजारों महिलाओं को रोजगार प्रदान करने की अपार संभावनाएं है। देवभोग में महिलाएं न सिर्फ आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि प्रदेश और देश की अर्थव्यवस्था में योगदान भी दे रही हैं। बुधूपारा की 28 वर्षीय अमिता साहू इसकी मिसाल हैं।

अमिता साहू देवभोग में कार्यरत बैंक आफ बड़ोदा छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक के 32 बीसी में से एक हैं, जो अपने क्षेत्र लाटापारा में गांव के लोगों को बैंकिंग सेवाएं प्रदान करते हुए आत्मनिर्भर हो गई हैं। बीसी अपने परिवार को अपने गांव में एक सभ्य जीवन देने में भी सक्षम हो रहे हैं। वह कहती हैं, हर कोई मुझे ‘बैंक वाली दीदी’ के रूप में बुलाता है। वे मुझे देर रात पैसे निकालने व जमा करने के लिए भी बुलाते हैं। मुझे उनकी मदद करने में खुशी होती है।

अमिता कहती हैं कि एक बार,आर्मी कि तैयारी कर रहे छात्र का एक्सीडेंट हो गया। वह अपने बैंक खाते से पैसे निकालना चाहता था, लेकिन रात में बैंक शाखा नहीं जा सका क्योंकि बैंक बंद होता है इसलिए उसने मुझे फोन किया। मैं तुरंत उसके घर पहुंची और रकम निकालने में उसकी मदद की। संकट में किसी की मदद करना बहुत अच्छा लगता है। बीसी योजना महिलाओं को रोजगार के अवसर देकर लाभान्वित करने और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए की थी।

कार्यक्रम को एक ग्राम पंचायत – एक बीसी सखी’ पहल के तहत डिजाइन किया गया था महिलाएं बैंकिंग सखी के रूप में इस योजना में शामिल हुई हैं और गांवों में लोगों को बैंकिंग सेवाएं प्रदान कर रही हैं। इस पहल के तहत अपने गांव की एकमात्र योग्य महिला होने के नाते, अमिता ने बैंकिंग सखी की नौकरी की। इस प्रयास में उनके घर वालो ने उनका साथ दिया और जल्द ही अमिता को प्रशिक्षण मिल गया। उन्हें जुलाई, 2021 में एसएचजी से ऋण के रूप में 68000 रुपये की सहायता 6% कि ब्याज में मिली।

जुलाई, 2021 में उन्होंने बीसी एजेंट के तौर पर काम करना शुरू किया अपना कारोबार चलाने लगीं। बाद में उन्होंने सरपंच के सहयोग से पंचायत मे अपना कार्यालय स्थापित करवाया। अमिता लगभग 10 लाख रुपये का मासिक लेनदेन करती है। उन्होंने सैकड़ों प्रधानमंत्री जन धन योजना खाते खोले हैं, जिनमें ज्यादातर उनकी ग्राम पंचायत में महिलाएं हैं। वह लोगों को नकद निकासी, नकद जमा,बिल भुगतान (उपयोगिताएं), बीमा (पीएमएसबीवाई और पीएमजेजेबीवाई) और पेंशन (एपीवाई) सेवाएं प्रदान करती हैं।

अमिता बताती हैं कि उनकी 50 प्रतिशत से अधिक ग्राहक महिलाएं हैं। महिला ग्राहकों को महिला एजेंटों से संपर्क करना आसान, भरोसेमंद और गोपनीयता बनाए रखने में उचित लगता है। जो दर्शाता है कि यह योजना ग्रामीण महिलाओं को स्वतंत्र, स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर रही है।ग्रामीणों के जीवन को और अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए बैंकों को उनके दरवाजे तक लाया है। पंचायत स्तर मे बीसी नियुक्त होने से बैंक में घंटों भर कि लगने वाली लाईन से मिली छुटकारा दुरी हुई कम बूड़े बुर्जुग को होने वाली परेशानी से मिली मुक्ति

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