डॉ. बिजेन्द सिन्हा जी का संपादकीय लेख “वृद्धाश्रम की बढती संख्या सभ्य समाज के लिए चिंताजनक”

रानीतराई :- भौतिक उपलब्धियां कितनी ही महत्वपूर्ण हो वे तब तक उपयोगी सिद्ध नहीं होगी जब तक उसमें मानवीय सद्गुण न जुडी हो। आज मनुष्य बुद्धि व साधनों की दृष्टि से विकसित हुआ है लेकिन मानवीय गुणों का पतन हो रहा है। आधुनिक व शिक्षित समाज में भौतिक विकास तो बहुत हुए परन्तु पारिवारिक मूल्यों के स्तर में गिरावट व जीवन मूल्य बेतहाशा ध्वस्त हुआ है। शिक्षा का ग्राफ बढने शहरीकरण व आधुनिकीकरण बढने के साथ वृद्धाश्रम की संख्या भी तेज़ी से बढ रही है, हाल ही में समाचार आया है कि गांवों में बनने लगे वृद्धाश्रम आधुनिक व शिक्षित समाज में वृद्धाश्रमो की बढती संख्या संवेदनहीनता व समाज में घटते जीवनमूल्यो का प्रमाण है। मोबाइल इन्टरनेट आदि आधुनिक टेक्नोलाजी नौजवान पीढ़ी और बुजुर्गों के बीच संवाद हीनता पैदा कर दिया है। आधुनिक संचार माध्यमों के अति उपयोग से संवाद हीनता के कारण उन्हें मानसिक बीमारी का सामना करना पड़ सकता है। घटते पारिवारिक मूल्यों के कारण सर्वाधिक परेशानी वृद्ध स्त्री-पुरुषोंको हो रही है। अधिकांश वृद्ध स्त्री पुरुष वृद्धाश्रम में रहने के लिए मजबूर हैं जो घटते मानवीय संवेदना का परिचायक है ।इस समस्या के क ई पहलू हैं ।व्यक्ति का स्वकेन्द्रित होना ,घटती मानवीय संवेदनाओं को विकसित,जिम्मेदारी से बचना, युवाओ का अपने अच्छे अवसर के कारण माता-पिता से दूर होना, पारिवारिक मूल्यों का अभाव,अच्छे संस्कार का अभाव,समाज में धन का बढता प्रभाव ,नौजवान पीढ़ी का बुजुर्गों के प्रति कर्तव्य बोध का अभाव और कमजोर पडते रिश्ते आदि क ई कारण हैं। परिवार में वृद्धों की उपेक्षा और अपमान के मामले लगातार सामने आ रहे है। वृद्धाश्रम की बढती संख्या समाज के लिए बहुत ही गम्भीर चिंता का विषय है।महिला तथा पुरूष बुजुर्गों के साथ बढते हुए यह समस्या सामाजिक समस्या बन गई है। जैसे-जैसे आधुनिकताव वैज्ञानिक प्रगति बढती ग ई वैसे -वैसे मानवीय मूल्यों में गिरावट आती गई। हमारी संस्कृति में बुजुर्गों का सम्मान उनकीं रक्षा निहित है। उसी समाज में माता पिता को वृद्ध अवस्था में वृद्धाश्रम में छोड़ने की प्रवृत्ति भी बढ रही है। यह मानवता को शर्मसार करती है। आधुनिक समाज की यह नवीन अवधारणा पारिवारिक मूल्यों के संकट का द्योतक है। यह समस्या शिक्षित वर्ग में भी देखने को मिलता है। भौतिकता व उपभोक्तावाद की ऑन्धी हमारे मूल संस्कारों को ही ध्वस्त करने पर तुली हुई है। आधुनिक जीवनशैली होनी भी चाहिए लेकिन अति आधुनिकता के चक्कर में हम अपने मूल संस्कारों को ही भूलते चले जा रहे हैं ।न्युक्लीअर फैमिली यानि एकल परिवार के घटते पारिवारिक मूल्यों के कारण सर्वाधिक परेशानी वृद्ध स्त्री पुरुषों को रही है। शिक्षित समाज में भी अधिकांश वृद्ध स्त्री पुरुष वृद्धाश्रम में रहने के लिए मजबूर हैं जो घटते मानवीय संवेदना का परिचायक है। भौतिकता व अति आधुनिकता के साथ पनपा यह पारिवारिक व नैतिक पतन और वृद्धाश्रम का चलन अब शहरों से गांव की ओर बढ रही है। बुजुर्गों के वृद्धाश्रम जाने से बुजुर्गों अपने साथ शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक कष्ट भोगते हैं वह समाज में क ई तरह के सवाल खडे करते हैं। बुजुर्गों के वृद्धाश्रम जाने से बच्चों पर भी भावनात्मक असर पडता है। बुजुर्ग एकाकीपन से अब मानसिक रोगो के शिकार होने लगे हैं। क्या बुजुर्गों की सर्वांगीण सुरक्षा हमारा कर्तव्य नहीं है? हमारे जीवन के दिशा -निर्देशक हैं। अतः हमारा कर्तव्य है कि हम बुजुर्गों की रक्षा कर उनका सम्मान करें। एक दौर था जब परिवार प्यार,विश्वास, भावनात्मक संबंध,समर्पण व सामन्जस्य की धरा पर टीका होता था। माता-पिता अपने बच्चों व उनकी संतानों के साथ प्रेम से रहते थे। गृहस्थ जीवन धर्म, संयम,त्याग एवं सहनशीलता का परिचायक था। यह परिवार का मूल स्वरूप था। परन्तु आधुनिक समाज में मानवीय मूल्यों में गिरावट आई है ।घटते पारिवारिक मूल्यों के कारण परिवार के सदस्य एक दूसरे के प्रति सेवा और उत्सर्ग भाव रखने के स्थान पर स्व केन्द्रित-संकीर्ण होने लगे हैं। अपने सुख और भोग के लिए अत्यंत आत्मीयता स्वजन की उपेक्षा करना सहज होते जा रहा है। विशेष कर महामारी के इस दौर में कोरोना महामारी के विभिन्न रूपों के बढते संक्रमण काल में बुजुर्गों की रक्षा हमारा महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होना चाहिए। कोरोना की तीसरी लहर से हमारे समाज के बुजुर्गों की बडी संख्या को हमें सुरक्षित रखना चाहिए। वह हमारा संरक्षक व मार्गदर्शक है ।अतः हमारा प्रथम कर्तव्य है कि हम बुजुर्गों को सम्मान व महत्व दे । साथ ही बच्चों व नौजवानो पर सावधानीपूर्वक ध्यान रखना होगा, कोरोना की तीसरी लहर की शुरुआत हो चुकी है,कोरोना का प्रकोप तेजी से बढ रहे हैं। इसके लिए हमें अतिरिक्त सावधान रखनी होगी। कोरोना की तीसरी लहर हर जगह फैलने लगी है। हमें लगातार सावधान रख कोरोना के प्रोटोकॉल का अन्तरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन के गाइडलाइन को स्वभाव में लाना होगा। अन्यथा कोरोना की तीसरी लहर फिर परेशान कर सकती है। इस महामारी से बचने के लिए मास्क लगाना,लगातार हाथ धोना व लोगों से 2 गज की दूरी रखना चाहिए, कोरोना की तीसरी लहर से बचने के लिए विधिवत रूप से वैक्सीन लगाना चाहिए तभी जनता सुरक्षित रह सकेगी,उल्लेखनीय है कि बुजुर्गों का अनुभव उनका ज्ञान परिवार, समाज एवं देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है ।आदर्श परिवार की पुनर्स्थापना के लिए नैतिक व पारिवारिक शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण है। जिसकी आज सर्वाधिक आवश्यकता है। मौजूदा दौर में आत्मीयता रिश्ता ,सहिष्णुता व सामन्जस्य जैसे सद्गुणों की आवश्यकता जिससे पारिवारिक जीवन में भौतिक सुधार करके संवेदना एवं संस्कारों को बढावा देकर परिवार निर्माण की ओर एक सामयिक व सार्थक कदम बढा सकते हैं।

B. R. SAHU CO-EDITOR
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B.R. SAHU CO EDITOR - "CHHATTISGARH 24 NEWS"

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