डॉ. बिजेन्द सिन्हा जी का संपादकीय लेख “शान्ति व सदभावना हमेशा कायम रहे स्वतंत्र भारत में”

रानीतराई :- हमारा देश स्वतंत्रता के 78 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। यह बेहतर भारत की संकल्पना को सामने लाने का उपयुक्त अवसर है। एक ऐसा भारत समाजिक समानता पर आधारित व्यवस्था की स्थापना और हिंसामुक्त व शोषण रहित समाज की स्थापना हो। जहाँ धर्म व जाति के आधार पर किसी से भेदभाव न हो। ऐसा भारत जहाँ नफरत व घृणा पर एकता व समता की विजय हो। जहाँ मानवीय गरिमा का उल्लंघन न हो।
स्वतंत्रता का अर्थ नैतिकता की अवहेलना या फिर जीवन मूल्यों की अवमानना नहीं है,ऐसे भारत का निर्माण हो जहाँ अधोसंरचना व भौतिक विकास के साथ मानवीय सद्गुणों का विकास भी हो। समाजिक पुनर्निर्माण वर्तमान सन्दर्भ में आवश्यक है। आज हमारा देश चहुँमुखी विकास कर विश्व समुदाय में स्थान बनाया है। फिर भी कुछ सुधार की आवश्यकता है ।कभी-कभी होने वाली जातिगत हिंसा,धर्म व जाति के नाम पर बंटा समाज जैसी समस्याएं आज भी व्याप्त है। आजादी के समय देश सिर्फ दो भागों में विभाजित हुआ था लेकिन आज धर्म जाति वर्ग सम्प्रदाय के आधार पर क ई टुकडो में विभक्त हो गया है। जिससे समाजिक सौहार्द्रता में कमी आई है। लगता है कि हमारा राष्ट्रीय अस्तित्व व मानवीय गरिमा ही खतरे में न आ जाए। आज का भारतीय समाज जिस तरह टुकडो में बंट कर मूल्यहीन हो रहा है सवह राष्ट्रीय व मानवीय जीवन की गरिमा को कम करता है। धर्म जाति भाषा प्रान्त व सम्प्रदाय के आधार पर जिस तरह की संकीर्णता मौजूदा परिवेश में है, वह समाज के लिए खतरा है।वर्तमान समय में जातिवाद व धार्मिक ध्रुवीकरण तेजी से बढ रहे हैं। ध्रुवीकरण से समाज में वैमनस्य विभेद-विभाजन की दुखद दीवारें खड़ी हो जाती हैं। संविधान की प्रस्तावना व्यक्ति व राष्ट्र की एकता व अखण्डता की गरिमा बनाए रखने के लिए लोगों के बीच भाईचारे को बढावा देते हैं लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण विभाजनकारी भावना को बढावा देते हैं। धर्म व जाति आधारित राजनीति ने देश का काफी नुकसान किया जिसका परिणाम पूरे देश ने देखा।ध्रुवीकरण का सीधा असर देश के सौहार्द पर पडता है। हमारे संविधान का निर्माण धर्म पंथ जाति व लिंग के आधार से नहीं हुआ है। संविधान के मूल में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा है ।लेकिन लगता है कि वर्तमान समय में सास्कृतिक एकता व सामाजिक सौहार्द्रता में कमी आई है। राष्ट्र के हित के मुद्दों पर सहमति व सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर सभी लोगों की सहमति बननी चाहिए व सभी लोगों को आपसी सहयोग से कार्य करना चाहिए। यह राष्ट्रीय हित के लिए सबसे जरूरी है ।अपने जैसे लोगों से मधुर संबंध बनाना व अपने से भिन्न मत वाले के प्रति विमुखता का भाव अनेकता में एकता विविधता के बीच समता मे बाधक है ।इससे धर्मनिरपेक्षता का ताना-बाना बिगड़ सकता है। यदि समाज धार्मिक आधार पर विभाजित रहा तो हमेशा क्लेश अशान्ति व कटुता जनमानस को विचलित करती रहेगी। आज सर्वाधिक आवश्यकता देश की धर्मनिरपेक्ष पहचान को बनाए रखने की है। धर्म व मजहब के स्वर शान्ति में वृद्धि के लिए होना चाहिए। अपना यह देश विश्व शक्ति बनकर उभरा है परन्तु कुछ विडम्बना भी है। आजादी के इतने वर्ष बाद भी देश के कुछ हिस्सों में आज भी जातिगत हिंसा देखने को मिलता है। साम्प्रदायिकता की आग राष्ट्रीय एकता को प्रभावित करता है। आजादी के इतने वर्ष बाद भी समाज में असन्तुलन व असमानता व्याप्त है। नैतिक आर्थिक व सामाजिक उत्थान के बिना सामाजिक बदलाव का उद्देश्य असम्भव है। इन समी समस्याओं का समाधान समतामूलक समाज की रचना है। संविधान में उल्लेखित समानता के सिद्धांत में समतामूलक की अवधारणा है,जिसको साकार करने की जरूरत है। समता के भाव कोअपनाने से ही सामाजिक शान्ति आएगी। जातिगत भेदभाव को खत्म करने,समाजिक लोकतंत्र को मजबूत करने,समाजिक न्याय अपनाने व समता के भाव को समझने स्वीकारने व अपनाने की जरुरत है। नये भारत के निर्माण के सन्दर्भ में विकास का पैमाना सिर्फ साधनों व सुविधाओं की अधिकता से ही नहीं बल्कि संस्कारित व्यक्तित्व व बेहतर समाज के निर्माण से भी है। आजादी की लड़ाई में सभी जाति , धर्म के लोगों का योगदान रहा है। धर्म व जाति के नाम पर तनाव व भेदभाव देश हित में नहीं है। संविधान भी इस वर्गभेद को अस्वीकारा है । संविधान सबको समान नजर से देखता है। वर्ग जाति धर्म सम्प्रदाय के आधार पर भेदभाव एक को सम्मान व दूसरे को घृणा की दृष्टि से देखना व घृणा करना वैचारिक ही नहीं मानवता की दृष्टि से भी उचित नहीं है। जात-पात के नाम पर बंटे अपने अगठित समाज को फिर से एकता और समता के सूत्र में बाँधने की आवश्यकता है।सभी धर्म के लोगों के बीच भाईचारा व सद्भावना बना रहे। आज जितनी भी भ्रान्तियाँ व समस्याऐ दिखती हैं उसके पीछे सिर्फ कट्टरता ही है। अपने से भिन्न मत को सहने की भावना विकसित न रही तो देश में हमेशा क्लेश अशान्ति व कटुता जनमानस को विचलित करती रहेगी। इन समस्याओं के समाधान के लिए धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाने की जरुरत है ।समता एकता और मिलजुलकर रहने की अभिरुचि जितनी अधिक होगी समाज की समर्थता व सभ्यता उसी क्रम में बढती चली जाएगी। हम विचारों जाति पंथ को खुद के टुकड़े करने के लिए इस्तेमाल न करें। संविधान की सुचारू व्यवस्था के लिए अनिवार्य ऐसी व्यवस्था हो जिसमें सब सहज और सुरक्षित महसूस करें ।ऐसे शासन तंत्र विकसित हो जिसमें जाति वर्ग मत पंथ आदि विभाजक रेखाओं का कोई स्थान न हो।सद्भाव हमारी संस्कृति का मूल है।
गण तान्त्रिक परम्पराओं को बनाए रखने के लिए समग्र व समावेशी भावना विकसित करने की जरूरत है। सर्व धर्म समभाव से ही राष्ट्र विकास पथ पर अग्रसर हो सकता है। शान्ति व सद्भाव बनाए रखने के लिए सुयोग्य नागरिकों का निर्माण किया जाए। समुचित शिक्षा व नैतिक शिक्षा से ही यह सम्भव हो सकता है ।नैतिक शिक्षा से ही बेहतर समाज का निर्माण हो सकता है। शान्ति व सद्भाव बनाए रखने के लिए समता संवेदनशीलता शुचिता व ममता आदि गुणों को अपनाने की जरुरत है।समाजिक समानता पर आधारित व्यवस्था की स्थापना और हिंसामुक्त व शोषण रहित समाज की स्थापना होना चाहिए। समता, सादगी, ईमानदारी, विकेन्द्रीकरण, पर्यावरण की रक्षा, भेदभाव का अन्त,सभी धर्मों का आपसी सम्मान व भाईचारा यह राष्ट्रीय हित के लिए सबसे जरूरी है। ऐसी व्यवस्था से एकता,समानता,भाईचारा व शान्ति के महान लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। आशा है कि अपने भारत देश में शांति व सदभावना बनाए रखने के लिए देशभक्ति व राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर निरन्तर प्रयासरत रहेंगे।

B. R. SAHU CO-EDITOR
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B.R. SAHU CO EDITOR - "CHHATTISGARH 24 NEWS"

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