डॉ. बिजेन्द सिन्हा जी का संपादकीय लेख “जीवन शैली में बदलाव की जरुरत”
B. R. SAHU CO-EDITOR
iरानीतराई :- समर्थ स्वास्थ्य के आधार पर ही परिवार व समस्त राष्ट्र समर्थ बनता है, हमारी संस्कृति आरोग्य या उत्तम स्वास्थ्य को धर्म अर्थ काम और मोक्ष का साधन माना गया है, लेकिन मौजूदा परिवेश में विकृत जीवन शैली, उपभोक्ता वाद के कारण नकारात्मक मानसिकता पनपते जा रही है जिसके कारण कुण्ठा हताशा अवसाद व तनाव जीवन चर्या में शामिल होते जा रहे हैं, अनियमित खान-पान विकृत जीवनशैली, कृत्रिम रसायन युक्त भोजन ,टूटते-बिखरते परिवार, शराब-नशे की आदत पर्यावरण प्रदूषण विशेष कर फैलते जा रहे वायु प्रदूषण आदि के कारण मानव उत्तम स्वास्थ्य के स्थान पर बीमारियो की ओर अग्रसर हो रहा है। “वर्तमान समय में युवाओं में बढ़ रही हार्ट अटेक की घटनाएं मानव जगत के स्वास्थ्य के लिए चिन्ताजनक है”
युवाओं में बढ़ रही यह समस्या स्वस्थ जीवन व राष्ट्रीय खतरे का संकेत दे रही है, इन बातों पर गम्भीरता से चिंतन करना आवश्यक है, यह समस्या समाजिक व राष्ट्रीय विमर्श का विषय होना चाहिए, सुखी समुन्नत जीवन जीने का प्रयास हो न कि अर्थ उपार्जन को ही जीवन का ध्येय माना जाय विचार को परिपक्व बनाया जाना चाहिए जिसमें विपरीत पपरिस्थिति के साथ तालमेल बैठाने की क्षमता है,हाल ही में आई एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार देश में 2.75 करोड़ दम्पति नि:सन्तानता से ग्रस्त है। यह समस्या राष्ट्रीय आपदा का रूप लेते जा रहा है, अन्य कारणों के अलावा आधुनिक पहनावे के रूप में जीन्स जैसे वेश भूषा भी इस समस्या का एक कारण है, ज्ञातव्य है कि आज के शिक्षित व आधुनिक समाज में भी नि:सन्तानता के रूप में भी देखा जाता है जिसके कारण ऐसे दम्पति मानसिक यातना के शिकार होते हैं, फलस्वरूप पीड़ित दम्पति अपना अधिकांश समय व धन सन्तान प्राप्ति के लिए खर्च करते हैं जिसके कारण परिवार पर आर्थिक भार पड़ता है, इस तरह यह समस्या देश में आर्थिक विषमता के रूप में सामने आ रहा है, युवाओं के भविष्य को ध्यान में रखते हुए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा इन समस्याओं के समाधान के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा, नियन्त्रण एवं रोकथाम का प्रयास जरुरी है, शारीरिक, मानसिक जीवन चर्या तथा व्यवहारिक स्तर पर उपचार व चिकित्सा द्वारा स्वस्व जीवन को सुनिश्चित किया जा सकता है।