डॉ. बिजेंद सिन्हा जी का संपादकीय लेख “वर्तमान दौर में त्योहार की प्रासंगिकता”।

Cg24News-R:- त्योहार मानवीय जीवन में गहरे आन्तरिक व आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है। यह जीवन में आन्तरिक व वाह्य उत्कृष्टता का मुख्य आधार है।त्योहार जीवन चर्या के ठहराव से हटकर जीवन में नवीनता व उत्साह का संचार करते हैं। त्योहार सामाजिक व सामाजिक एकता का प्रतीक है। कोई भी त्यौहार यह दर्शाता है कि समाज में प्रेम एकता सद्भावना व भाईचारे को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है। त्योहार समाज में सभी जाति धर्म मत पंथ के लोगों को मिलकर रहने की प्रेरणा देता है विशेष कर होली का त्यौहार सामाजिक समरसता व राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है। परन्तु समय के साथ त्योहार मनाने की गतिविधियों में विकृतियां आने लगी। त्योहार जैसे शुभ अवसर पर नशे व वाद-विवाद की स्थिति पैदा होने लगी। यह विडम्बना ही है कि होली जैसे त्योहार में कभी-कभी आपराधिक घटनाएं भी होती हैं त्योहार पहले एकता भाईचारा व सामाजिक सौहार्द्रता के लिए मनाया जाता था। सामाजिक समरसता में आई कमी का प्रभाव त्योहार पर भी पड़ने लगा। देश के कुछ हिस्सों में त्यौहारों के अवसर पर साम्प्रदायिक तनाव भी देखने को मिलता है। सामान्य सी बातों पर विवाद की जमीन तैयार होने लगती है। वातावरण में विष घुलने लगता है बीते दिनों त्योहार के शुभ अवसर पर देश के कुछ हिस्सों में साम्प्रदायिक तनाव देखने को मिला। ऐसे में तनाव व दहशत के साए में त्यौहारों मनाने की स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसे परिवेश में कानून व्यवस्था का संरक्षण जरूरी हो जाता है। इस तरह तनाव व दहशत भरे माहौल में त्योहार का उल्लास ही समाप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति पैदा करके हम जीवन की वास्तविकता से कितने दूर हो रहे हैं यह गम्भीर चिन्तन का विषय है। एक समय था जब त्योहारों के जरिये न सिर्फ सांस्कृतिक एकता की बात होती थी वरन उसमें समाज के सभी धर्मावलम्बियों का समावेश व योगदान रहता था। त्योहार सामाजिक समरसता का आधार भी रहता था। क्योंकि त्योहार धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक एकता के परम्परागत आयोजन रहे हैं। त्योहार के समय ऐसी घटनाओं से लगता है कि हमारी एकता व मानवीय गरिमा ही खतरे में न आ जाए। समाज जिस तरह टुकडो में बंट कर मूल्यहीन हो रहा है वह हमारी राष्ट्रीय व मानवीय जीवन की गरिमा को कम करता है। अपने जैसे लोगों से मधुर संबंध बनाना व अपने से भिन्न मत वाले के प्रति विमुखता का भाव अनेकता में एकता विविधता के बीच समता में बाधक है यदि समाज इसी तरह धार्मिक आधार पर विभाजित रहा तो देश में हमेशा क्लेश अशान्ति व कटुता जनमानस को विचलित करती रहेगी। वर्ग जाति धर्म सम्प्रदाय के आधार पर भेदभाव एक को सम्मान व दूसरे को घृणा की दृष्टि से देखना व घृणा करना वैचारिक ही नहीं मानवता की दृष्टि से भी उचित नहीं है। अपने से भिन्न मत को सहने की भावना विकसित न रही तो देश में हमेशा क्लेश अशान्ति व कटुता जनमानस को विचलित करती रहेगी। जाति व धर्म के नाम पर तनाव व भेदभाव देश हित में नहीं है। सभी धर्मों के लोगों के बीच भाईचारा व सद्भावना बना रहे।समता एकता और मिलजुलकर रहने की अभिरुचि जितनी अधिक होगी समाज की समर्थता व सभ्यता उसी क्रम में बढती चली जाएगी। होली का त्यौहार हमें आपसी भेदभाव समाप्त कर एक-दूसरे के साथ सौहार्दपूर्ण व प्रेमपूर्ण रहना सिखाता है। आशा है समाज में शान्ति व सद्भाव बनाए रखने के लिए समाज व देशहित को ध्यान में रखते हुए निरन्तर प्रयासरत रहेंगे।

आपका शुभचिंतक Bijendra sinha.

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B. R. SAHU CO-EDITOR
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