डॉ. बिजेंद सिन्हा जी का संपादकीय लेख “गाँव का भविष्य मतदाताओं पर निर्भर”।

Cg24News-R :- लोकतान्त्रिक देश में मतदाता ही भाग्य निर्माणकर्ता है। उसके पास मतदान की ऐसी ताकत होती है जिसके सदुपयोग व दुरूपयोग से गांव में सुव्यवस्था कायम हो सकता है या अव्यवस्था व अशान्ति जैसी विकृतयां आ सकती हैं। वोट को गम्भीरता से न लेना अपने नागरिक कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व की गरिमा को अस्वीकार करना है। वोट को सुयोग्य लोगों को ही स्थानांतरित किया जाना उपयुक्त है। गाँव का भविष्य पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि मतदाता अपने दायित्व को किस हद तक समझने लगा और उसका सहयोग व साहस किस हद तक जागृत हुआ।यदि मतदाता सामान्य स्थिति में रहेगा तो फिर गांव की व्यवस्था में उत्कृष्टता का समावेश सम्भव नहीं होगा। अतः उसके दूरदर्शी सोच व परिष्कृत दृष्टिकोण की जरूरत है। चूंकि यह बातें इसलिए प्रासंगिक हैं क्योंकि वर्तमान में हो रहे स्थानीय चुनाव भी जातिवाद परिवारवाद व खेमेबाजी से अछूता नहीं है। यह इतना हावी हो जाता है कि मूल मुद्दा पीछे छुट जाता है। आजादी के इतने वर्ष बाद भी चुनावों में जातिवाद का साया पड़ना चिन्ता का विषय है। ऐसी विसंगतियों पर काबू पाने के लिए बड़े प्रयासों की आवश्यकता है।जागरूक मतदाता द्वारा सुनियोजित प्रजातंत्र ही अपना आदर्श और उद्देश्य पूर्ण कर सकता है। यदि जनता अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझती व उसका पालन ठीक से नहीं करती तो समाज में अव्यवस्था अशान्ति और अराजकता जैसी विभिषिकाएं उपस्थित होती हैं दुष्परिणाम स्वरूप अनाचार अपराध आदि अनेक दुष्प्रवृत्तियां सामाजिक क्षेत्र में सामने आती हैं ।तब स्थितियां प्रतिकूल प्रतीत होता है।राजनैतिक जीत हासिल करने के लिए शराब जैसे मादक चीजों का सहारा लेने, अनेक हथकण्डे अपनाने, आपसी रिश्ते में चुनावी संघर्ष प्रत्याशियों की बढ़ती संख्या आदि से लगता है कि राजनीति विमर्श का विषय व जनसेवा का सशक्त माध्यम न होकर सत्ता के लिए ही है। कभी-कभी मधुर संबंध व रिश्ते भी दांव पर लग जाते हैं। विचार निरर्थक हो गयी है। ऐसा लगता है कि जनता सिर्फ चुनावी समीकरण का हिस्सा है। ऐसे परिवेश में जनता को अपनी अस्मिता एवं स्वाभिमान को जगाने की जरूरत है। वर्तमान समय में भी स्वस्थ व बेहतर जीवन जीने के अवसर पैदा करना मुश्किल प्रतीत होता है। ग्रामीण विधि व्यवस्था को पूरी तरह ध्यान में रखते हुए निर्धारित की गई आर्थिक नीतियां ही बेरोजगारी पर अंकुश एवं लोगों को व्यवस्थित व बेहतर जीवन का अवसर दिला सकती है। श्रमनिष्ठा एवं ईमानदारी ही गांव को आत्मनिर्भर व ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है।अपने कर्तव्य के प्रति अटूट निष्ठा एवं ईमानदारी का अनुसरण ही समाज, गाँव एवं देश की प्रगति का स्थायी आधार है। कुपोषण स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही आर्थिक साधनों का उपयोग किया जाना चाहिए। तभी गाँव, राज्य या राष्ट्र की प्रगति सम्भव है। अर्थ व्यवस्था की मजबूती के लिए नौकरियों के लिए नईं नीतियां बनें एवं युवाओं को कौशल सुविधा का अवसर मिले। इसके अलावा कृषि क्षेत्र में बढ़ाना के लिए भी ध्यान देने की जरूरत है, अब समय आ गया है कि मतदाताओं को अपना विवेक का उपयोग करना जरूरी है, जनता में लोकतांत्रिक निष्ठा बनी रहे इसके लिए मतदाताओं का विवेक जागृत करना ही उचित व प्रभावकारी साधन है, सुव्यवस्था स्थापित करने के लिए मतदाताओं के विवेकपूर्ण व परिष्कृत दृष्टिकोण की जरूरत है, लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था का असली मालिक मतदाता ही है।

आपका
सेवाभावी शुभचिंतक
Bijendra sinha.

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B. R. SAHU CO-EDITOR
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