धार्मिक पर्व- मकर संक्रांति पर्व सम्पुर्रण भारतवर्ष की धर्म एवं संस्कृति की सभ्यता और पारस्परिक स्नेह का प्रतीक है
*मकर संक्रांति कैसे मनायें?*
प्रातःकाल जल्दी उठाकर तिल का उबटन लगाकर तिलमिश्रित जल से स्नान करें ।
स्नान के पश्चात् अपने आराध्य-देव की पूजा-अर्चना करें ।
ताँबे के लोटे में रक्त चंदन, कुमकुम, लाल रंग के फूल तथा जल डालकर पूर्वाभिमुख होकर सूर्य-गायत्री मंत्र से तीन बार सूर्य भगवान को जल दें और सात बार अपने ही स्थान पर परिक्रमा करें ।
*सूर्य गायत्री मंत्र*
ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि । तन्नो भानुः प्रचोदयात् ।
पक्षियों को अनाज व गाय को घास, तिल, गुड़ आदि खिलायें ।
‘पद्म पुराण के अनुसार ‘जो मनुष्य पवित्र होकर भगवान सूर्य के आदित्य, भास्कर, सूर्य, अर्क, भानु, दिवाकर, स्वर्णरेता, मित्र, पूषा, त्वष्टा, स्वयम्भू और तिमिराश – इन 12 नामों का पाठ करता है, वह सब पापों और रोगों से मुक्त होकर परम गति को पाता है ।’
*तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं* – तिल-जल स्नान, तिल-दान, तिल-भोजन, तिल- जल अर्पण, तिल-आहुति तथा तिल उबटन मर्दन ।
किंतु ध्यान रखें कि सूर्यास्त के बाद तिल व तिल के तेल से बनी वस्तुएँ खाना वर्जित है ।
यह पावन पर्व पारस्परिक स्नेह और मधुरता की वृद्धि का महोत्सव है, इसलिए इस दिन लोग एक-दूसरे को स्नेह के प्रतीक तिल और मधुरता का प्रतीक गुड़ देते हैं ।
आज से तिल-तिल दिन बढ़ने लगते हैं, अतः इसे ‘तिल संक्रांति के रूप में भी मनाया जाता है । ‘विष्णु धर्मसूत्र’ में कहा गया है कि पितरों के आत्मा की शांति, स्वयं के स्वास्थ्यवर्धन व सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं– तिल-जल स्नान, तिल-दान, तिल-भोजन, तिल- जल अर्पण, तिल-आहुति तथा तिल उबटन मर्दन ।