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महिला आयोग की सख्ती : एमिटी यूनिवर्सिटी मामला पहुंचा आयोग, विधवा को मिला न्याय, दहेज व संपत्ति विवादों में त्वरित निराकरण


छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक की अध्यक्षता में आज महिला आयोग कार्यालय, रायपुर में महिला उत्पीड़न से संबंधित मामलों की सुनवाई की गई। इस अवसर पर प्रदेश स्तर पर 355वीं एवं रायपुर जिले की 171वीं जनसुनवाई आयोजित की गई।

दहेज उत्पीड़न व आत्महत्या मामला

एक प्रकरण में आवेदिका ने बताया कि उसकी बहन ने विवाह के मात्र दो माह बाद ससुराल पक्ष की प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली। सामाजिक बैठक में आवेदिका व उसके पिता को अपमानित किया गया। थाना-जामुल द्वारा अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं किए जाने की बात भी सामने आई।

आयोग की समझाइश के पश्चात अनावेदक पक्ष द्वारा मृतका के विवाह में दिया गया लगभग 6 लाख रुपये मूल्य का सोना-चांदी व अन्य सामान आयोग के समक्ष आवेदिका को लौटाया गया। साथ ही पूर्व आदेश के अनुसार 25,000 रुपये नगद भी प्रदान किए गए। उभय पक्षों की सहमति से प्रकरण नस्तीबद्ध किया गया।

विधवा को मिला संपत्ति में हिस्सा

एक अन्य मामले में वर्ष 2013 में पति की मृत्यु के बाद संयुक्त संपत्ति में विधवा आवेदिका का 1/5 हिस्सा होने के बावजूद विक्रय की पूरी राशि अन्य पक्ष के खाते में जमा कर ली गई थी। आयोग के हस्तक्षेप से आज सुनवाई के दौरान आवेदिका को उसके हिस्से की 1,48,000 रुपये की राशि आयोग के समक्ष दिलाई गई। प्रकरण नस्तीबद्ध किया गया।

एमिटी यूनिवर्सिटी के खिलाफ गंभीर आरोप

एक प्रकरण में आवेदिका ने आरोप लगाया कि कॉलेज प्रबंधन की प्रताड़ना से उसकी बेटी ने आत्महत्या कर ली तथा मामले को दबाने का प्रयास किया गया। आयोग द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश के बावजूद अनावेदक पक्ष की अनुपस्थिति पर सख्त रुख अपनाते हुए थाना के माध्यम से उपस्थिति सुनिश्चित कराई गई।

सुनवाई के दौरान आवेदिका द्वारा प्रस्तुत वीडियो व फोटो साक्ष्यों के आधार पर आयोग ने मृतका के मोबाइल की फॉरेंसिक जांच के आदेश दिए। साथ ही एस.पी. रायपुर एवं एस.पी. जगदलपुर से अब तक की जांच रिपोर्ट तलब करने के निर्देश जारी किए गए।

बी.एस.यू.पी. आवास प्रकरण

एक अन्य प्रकरण में आवेदिका ने बताया कि उसकी मां से बी.एस.यू.पी. आवास के एवज में 3,000 रुपये लिए गए थे, किंतु 9 वर्ष बीतने के बावजूद आवास नहीं दिया गया। वर्ष 2013 में नगर निगम द्वारा मकान तोड़े जाने के बाद भी वैकल्पिक आवास नहीं मिला।

आयोग ने नगर निगम के आयुक्त (सामान्य प्रशासन) को निर्देश दिए कि एक माह के भीतर आवेदिका को आवास आबंटित करें, अथवा स्पष्ट जवाब प्रस्तुत करें।

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