छत्तीसगढ़ : छत्तीसगढ़ में भोजली पर्व अच्छी फसल की कामना एवं मित्रता के प्रतीक पर्व के रूप में पूरे छत्तीसगढ़ विशेष कर ग्रामीण अंचलो में हर्षाेल्लास के साथ भाद्र मास के कृष्ण पक्ष प्रथम दिवस को मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष नवमी के दिन से भोजली पर्व की तैयारी शुरू हो जाती है। इस दिन महिलाओं द्वारा किसी निश्चित स्थान पर मिट्टी से भरी बांस की छोटी-छोटी टोकरियों (छत्तीसगढ़ी में चुरकी बोलते है) में फसल मुख्य रूप से गेंहू, धान, जौं आदि के बीज बोया जाता है।
धान के बीजा रोपण के पश्चात् प्रतिदिन भोजली के बिरवा (अंकुरण) की सेवा की जाती है, भोजली के ऊपर हल्दी-पानी छिड़का जाता है। प्रत्येक रात्रि में सेवागीत गाया जाता है। सेवा गीतों में आरती गीत, स्वागत गीत, जागरण गीत एवं सिराने के गीत प्रमुख हैं। इन सभी गीतों में भोजली स्तुति की जाती है।
कुवारी कन्याओं द्वारा भोजली को सिर में रखकर गाजे बाजे के साथ ग्राम भ्रमण:
इस बीच इस प्रकार से ‘भोजली गीत’ गाया जाता है….
देवी गंगा देवी गंगा लहर तुरंगा, लहर तुरंगा,
तुंहरे लहर माता भीजय आठो गंगा, अहोदेवी गंगा ।।
वे पानी बिना मछरी, पवन बिना धाने, सेवा बिना भोजली के तरसे पराने…,
रिमझिम-रिमझिम सावन के फुहारे, चंदन छिटा देवंव दाई जम्मो अंग तुम्हारे.
गांव के नदी या तालाब पहुचने पर वहाँ भोजली उठाने का कार्य नाते का भाई द्वारा किया जाता है। नदी या तालाब किनारे भोजली माता की अंतिम पूजा और आरती की जाती है तत्पश्चात नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। भोजली स्त्रियाँ विसर्जन करने के बाद दुखी होती हैं।
एक चिमटी माखुर कड़क भइगे चूना ।
चली दीन्ह भोजली मंदिर भइगे सूना ।।