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डॉ. बिजेन्द सिन्हा का संपादकीय लेख “कन्या भ्रूण हत्या व असमान लिंगानुपात”

“छत्तीसगढ़ 24 न्यूज़” वेबडेस्क : हाल ही में पुत्र मोह के कारण दादी द्वारा पोती की हत्या का मामला सामने आया है,ऐसी घटनाएं अत्यंत दुखद व चिन्तनीय है। वर्तमान समय में लिंगभेद बड़ी समस्या है,लड़का लड़की का भेद इस सीमा तक है कि शिक्षा के स्तर में सुधार,इतनी राष्ट्रीय स्तर की जागरूकता व सरकारी प्रयास के बाद भी परिवार व समाज में बेटा बेटी का भेद मिट नहीं रहा है, असमान लिंगानुपात भी इसी का परिणाम है, कन्या भ्रूण हत्या के करण यह समस्या उत्पन्न हुई है,यह समस्या प्रायः सभी वर्गों में व्याप्त है। समाज में लिंगभेद गहराई तक समाया हुआ है, शिक्षा व विज्ञान के बावजूद समाज में पुत्र की चाहत बनी हुई है, सभ्य समाज कहलाने के बाद भी कन्या भ्रूण हत्या कर दी जाती है।

पुत्र मोह के कारण दादी द्वारा पोती की हत्या व पिता द्वारा अपनी मासूम बेटी की निर्ममता से हत्या समाज व सरकार के लिए गहन चिंतन व शोध का विषय है,समाज में वैज्ञानिक व भौतिक प्रगति के साथ अन्धविश्वास व अन्धपरम्पराए कम होने चाहिए लेकिन कन्या भ्रूण हत्या के मामले में ऐसा नहीं लगता, आधुनिक शहरों में भी विषम लिंगानुपात देखने से लगता है कि यह समस्या प्रायः सभी वर्गों में व्याप्त है।

शिक्षित व आधुनिक समाज लोगों द्वारा लड़के की चाहत वाली मानसिकता मन को आहत करता है वर्तमान समय में लोग रहन सहन,वेश भूषा,खान पान,बोल चाल जीवन शैली से बदल गये हैं लेकिन भारतीय समाज में सदियों से व्याप्त कुरीतियां व अन्ध विश्वास जनमानस में गड़े हुए हैं। आधुनिकता सिर्फ रहन सहन,वेशभूषा जीवन शैली से ही नहीं बल्कि आधुनिकता विचारों मे भी होना चाहिए, लड़के की चाहत के दाम्पत्य व पारिवारिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

पारिवारिक विवाद का कारण लड़के की चाहत भी है, देश में बढ़ती हुई दुष्कर्म की प्रमुख वजह भी कन्या भ्रूण हत्या व असमान लिंगानुपात है, पौराणिक आख्यानों मे भी देखें तो भी पौराणिक खल चरित्रों ने भी कन्या भ्रूण नहीं किया था। अगर हममें मानवता है तो हमारी आत्मा इस अपराध के लिए आज्ञा नहीं दे सकता,छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में विषम लिंगानुपात है।

बेटी तो पराया धन है वाली भावना आज भी कायम है, वर्षों पूर्व के पूर्वाग्रह से ग्रसित मान्यता है कि लड़का ही वंश चलाएगा,यह मूल भ्रम है,यह पितृसत्तात्मक सोच भी है, लड़के की चाहत ने समाज को खोखला कर दिया है। शिक्षित समाज व आधुनिकता और तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद पुरूषों के अनुपात में महिलाओं की संख्या घटती जा रही है।

बेटों को बेटियों से अधिक महत्व देना विडम्बना है, कन्या भ्रूण हत्या सभ्य समाज के लिए अभिशाप है,कन्या भ्रूण हत्या व असमान लिंगानुपात की समस्या का मामला सरकार प्रशासन व कानून व्यवस्था से कहीं अधिक समाज सुधार व जनमानस में वैचारिक बदलाव का है इस सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए पुरूषवादी मानसिकता को बदलना होगा नैतिक आधार पर सामाजिक क्रान्ति लानी होगी।

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