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डॉ. बिजेंन्द सिन्हा जी का संपादकीय लेख “स्वस्थ भारत का लक्ष्य पूरा हो”

रानीतराई :- समर्थ स्वास्थ्य के आधार पर ही परिवार व समस्त राष्ट्र समर्थ बनता है। हमारी संस्कृति में आरोग्य या उत्तम स्वास्थ्य को धर्म अर्थ काम और मोक्ष का साधन माना गया है। लेकिन मौजूदा परिवेश में विकृतजीव नशैली व उपभोक्तावाद के कारण नकारात्मक मानसिकता पनपते जा रही है। व्यक्ति में बढ़ते जा रहे अवसाद तनाव व चिन्ता मानसिक व गम्भीर शारीरिक रोग ये समी विकृत जीवनशैली का ही परिणाम है। आधुनिक जीवनशैली की पहचान बन रहे इन्टरनेट मोबाइल टीवी ने लोगों को संचार एवं ज्ञान विकास के साथ रोग भी दिये हैं। नयी पीढ़ी के लोगों का जीवन मोबाइल टैबलेट व कम्प्यूटर पर निर्भर होते जा रहा है। कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि नयी पीढ़ी के लोगों में नशे व शारीरिक निष्क्रियता के मामले बढ़े हैं ।जिसके कारण भी हृदय रोगों का खतरा बढ़ रहा है। आरामपसन्दगी व सुविधायुक्त जीवन चर्या के फलस्वरूप गतिहीन जीवनशैली व अनियमित खान-पान के कारण ऐसे गम्भीर शारीरिक रोग बढ़ रहे हैं। पैदल चलना व्यायाम साईकिलिंग और शारीरिक श्रम आदि शारीरिक गतिविधियाँ जीवन चर्या से घट रही हैं। पहले लोगों की दिनचर्या प्रकृति के अनुकूल थी। उनकी यही दिनचर्या उन्हे स्वस्थ व सक्रिय बनाए रखती थी। वर्तमान समय में कम उम्र के लोगों में हृदय की बीमारियों का खतरा बढ़ा है। अनियमित खान-पान विकृत जीवन शैली रसायनयुक्त भोजन शारीरिक निष्क्रियता दाम्पत्य जीवन में नैतिक गिरावट टूटते-बिखरते परिवार शराब-नशे की आदत पर्यावरण प्रदूषण विशेष कर फैलते जा रहे वायु प्रदूषण आदि के कारण मानव उत्तम स्वास्थ्य के स्थान पर बीमारियों की ओर अग्रसर हो रही है। जिसमें हार्ट अटेक की समस्या भी है। पहले यह वृद्धावस्था या अधिक उम्र की बीमारी माना जाता था ।देश में युवाओं में हृदय रोगों का खतरा पिछले कुछ वर्षों में काफी तेजी से बढ़ता देखां जा रहा है। अब

लगातार युवाओं में हार्ट अटेक के मामले सामने आ रहे हैं। नेशनल हेल्थ सर्वे के अनुसार 15 से 49 आयु के पुरुषों में दिल की बीमारी मौत का प्रमुख कारण बन रही है। वर्तमान समय में युवाओं में बढ़ रही हार्ट अटेक की समस्या मानव जगत के स्वास्थ्य के लिए चिन्ताजनक है। जो भविष्य में काफी भयावह हो सकती है।युवाओं में बढ़ रही यह समस्या स्वस्थ जीवन पर व राष्ट्रीय खतरे का संकेत दे रही है। देश में युवाओं में बढ़ रही हार्ट अटेक की समस्या गम्भीर चिन्तन एवं शोध का विषय है हार्ट अटेक की समस्या को स्वास्थ्य प्राथमिकता में रखना चाहिए।
एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया का हर पाँचवा मधुमेह रोगी भारतीय।
एक अन्य समाचार के अनुसार कुछ अनुमानों के अनुसार देश में 2.75 करोड़ विवाहित जोड़े बांझपन से पीड़ित हैं। हर छठा जोड़ा बांझपन से प्रभावित है।
इन समस्याओं को देखते हुए देश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में भावी समाज का स्वरूप कितना भयावह होगा इसकी कल्पना की जा सकती है। यह स्थिति मानव समाज के स्वास्थ्य के लिए चिन्ताजनक व सोचनीय है एवं गहन चिंतन व शोध का विषय है।
ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जिसमें इन रोगों से संबंधित स्वास्थ्य सेवाओं तक सबकी पहुँच आसान हो सके। युवाओं के भविष्य को ध्यान में रखते हुए इन समस्याओं के समाधान के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा नियन्त्रण एवं रोकथाम का प्रयास जरुरी है। समस्या की विकरालता को देखते हुए हर जिले में परामर्श केन्द्र खोलने की आवश्यकता है जिससे न सिर्फ स्वास्थ्य रक्षा की जानकारी मिल सकती है बल्कि दिल की बिमारियों से संबंधित परामर्श एवं स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक भी किया जा सकता है ।

यह सभी समस्या समाजिक एवं राष्ट्रीय विमर्श का विषय होना चाहिए। वर्तमान समय के भाग-दौड़ भरे जीवन में सुखी समुन्नत जीवन जीने का प्रयास हो न कि अर्थ उपार्जन को ही जीवन का ध्येय माना जाय। विचार को परिपक्व बनाया जाए। जिसमें विपरीत परिस्थिति के साथ तालमेल बैठाने की क्षमता है। टेक्नोलाजी के उपयोग के साथ बीच-बीच में शारीरिक गतिविधियाँ भी जरूरी है। अप्राकृतिक व विकृत जीवन शैली तनाव व रोग ग्रस्त होने का कारण है जबकि अपनाए जाने वाले प्राकृतिक जीवनशैली स्वास्थ्यवर्धक व तनावों से मुक्त होने में सहायक है।
बेहतर स्वास्थ्य के लिए लाइफस्टाइल-आहार पर ध्यान रखकर स्वास्थ्य लाभ पाया जा सकता है बांझपन की समस्या भी गम्भीर चिन्तन का विषय है। यह समस्या भी राष्ट्रीय आपदा का रूप लेते जा रही है। अन्य कारणों के अलावा आधुनिक पहनावे के रूप में जीन्स जैसे वेश-भूषा भी इस समस्या का एक कारण है।
ज्ञातव्य है कि शिक्षित व आधुनिक समाज में भी बाँझपन को अभिशाप के रूप में देखा जाता है ।जिससे कारण पीड़ित दम्पति मानसिक यातना के शिकार होते हैं। फलस्वरूप पीड़ित दम्पति अपना अधिकांश समय व धन सन्तान प्राप्ति के लिए खर्च करते हैं । जिसके कारण परिवार पर आर्थिक भार पड़ता है। इस तरह यह समस्या देश में आर्थिक विषमता के रूप में सामने आ रही है।
शारीरिक व मानसिक जीवन चर्या में सुधार तथा व्यवहारिक स्तर पर उपचार व चिकित्सा द्वारा स्वास्थ जीवन को सुनिश्चित किया जा सकता है।

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