डॉ. बिजेंन्द सिन्हा जी का संपादकीय लेख “शीर्ष पर बढ़ते अपराध चिन्ताजनक”
B. R. SAHU CO-EDITOR
रानीतराई :- भौतिक विकास कितना भी हो वह तब तक सार्थक नहीं होगा जब तक उसमें मानवीय सद्गुणों का विकास न हो और रचनात्मक प्रवृत्तियां न जुड़ी हों। आज मनुष्य बुद्धि व साधनों की दृष्टि से विकसित हुआ है लेकिन मानवीय गुणों का पतन हो रहा है ।मनुष्य चरित्र की अपेक्षा धन-संपत्ति को अधिक महत्व दे रहा है। इससे नैतिक पतन हो रहा है। परिणाम स्वरूप अपराध दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। मौजूदा परिवेश में अपराध के विभिन्न रूपों का विस्तार हो रहा है। अपराध किसी भी प्रकार का हो समाज के पतन का कारण है।अश्लीलता व खुलापन ने समाज में अनाचार को बढ़ावा दिया है। उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण धनलोलुपता बढ़ी है जो आपराधिक घटनाओं के रूप में सामने आ रही है ।अपराध का बढ़ना समाज में अशांति और अवनति का कारण है ।इसलिए अपराध व हिंसा का तेजी बढ़ना चिन्ता का कारण बनते जा रहा है ।लोगों में कानून का भय का समाप्त होते जाना भी चिन्तन का विषय है ।
हमारा संविधान जनता को लोकतंत्र में सुरक्षा और सम्मान के साथ जीने की सिफारिश करता है। परन्तु मौजूदा दौर में निरंतर अपराध वृद्धि को देखते हुए मूर्त रूप से दूर लगता है। वर्तमान समय में अपराध आधुनिक समाज का हिस्सा बनते जा रहे हैं। गौरतलब है कि दिन- प्रतिदिन अपराध व हिंसा क्यों बढ़ते जा रहा है। समय के साथ अपराध के स्वरुप में बदलाव आते रहते हैं ।हत्या, यौन हिंसा, ठगी, अपहरण, मानव तस्करी, नफरतजनित हत्याएँ आदि अपराध आए दिन देखे जा सकते हैं। महिला अपराधों में हत्या, बबलात्कार, बलात्कार के साथ हत्या, सामूहिक बलात्कार, हत्या का प्रयास, उत्पीड़न आदि हैं। अपराध की निर्ममता व संवेदनहीनता यहाँ तक पहुंचा कि कुछ मामलों में अपने ही अपनों की जान ले लेते हैं। पशु-पक्षियों व मनुष्य में भले ही बौद्धिक चेतना शक्ति का ही अन्तर क्यों न हो परन्तु पशु-पक्षियों का जीवन भी प्रेम और संवेदना से परिपूर्ण है । मानवता शर्मसार तब होता है जब मासूम बालिकाओं ,नाबालिगों के साथ दुष्कर्म होता है और निर्ममता से उसकी हत्या कर दी जाती है। ऐसी निर्मम व जघन्य घटनाएं न सिर्फ समाज को विचलित करती है बल्कि मानवता से पशुता की ओर ले जाती है । सुसंस्कारिता यानि मानवीय गरिमा के अनुरूप मर्यादाओं के परिपालन से मनुष्य सच्चे अर्थों में मनुष्य बनता है। जघन्य अपराध का दुष्परिणाम यह है कि आपराधिक घटनाओं के बाद पीड़ित जो शारीरिक मानसिक व भावनात्मक कष्ट भोगते हैं वह समाज में कई सवाल खड़े करते हैं। मौजूदा परिवेश में आपराधिक मामले तेजी से बढ रहे हैं जो समाज के विघटन का सूचक है। यह कैसे समाज की रचना हो रही है जहाँ मानवीय संवेदना क्षीण होती जा रही हैं। क्या मानवीय संवेदना से रहित मानव की रचना हो रही है ? महिला सशक्तिकरण लैंगिक समानता और हर क्षेत्र में महिलाओं की योगदान की चर्चा हो रही है वहीं लगातार हो रही यौन हिंसा ने समाज को विचलित किया है। वर्तमान समय में भौतिक विकास तो बहुत हुए परन्तु मानवीय मूल्य बेतहाशा ध्वस्त हुआ है। गरीबी, बेरोजगारी, अभावग्रस्तता, सामाजिक अन्याय, भेदभाव, जबरदस्ती शादी, असमानताआदि अपराध के कारण हैं। विचारणीय है कि शिक्षित समाज, आधुनिक व विकसित शहरों में अपराध व हिंसा के बढ़ने से स्पष्ट है कि आर्थिक और शैक्षणिक उत्थान के साथ नैतिक उत्थान भी जरूरी है। बेरोजगारी, अभावग्रस्तता, योग्यता की उपेक्षा आदि ऐसे कारण हैं जो किशोरों को अपराध की ओर प्रवृत्त करते हैं अपराध होने के बाद अपराधी को सजा देना एक बात है और व्यक्ति अपराध की ओर प्रवृत्त ही न हो, ये दूसरी बात है यानि दोनों अलग-अलग बातें हैं। दूसरे तथ्य से ही अपराध से समाज को मुक्त किया जा सकता है। ऐसे राष्ट्र का निर्माण हो जिसमें सभी मनुष्य घर, परिवार व समाज में स्वयं को सुरक्षित महसूस करें। ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जिसमें मनुष्य का नैतिक विकास हो तथा एक सुसभ्य व सुसंस्कारित समाज का निर्माण करने में सहायक सिद्ध हो सके। बेहतर व सुसभ्य समाज की स्थापना में पारिवारिक व नैतिक शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण है जिसकी आज सर्वाधिक आवश्यकता है। वर्तमान समय के इस प्रगतिशील दौर में व्यक्तित्व निर्माण यानि मानवीय सद्गुणों की आवश्यकता है जिससे न सिर्फ अपराध व हिंसा से मुक्त रह सकते हैं बल्कि समाज में शांति व समृद्धि ला सकते हैं। हिंसा व अपराध किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। ऐसे में अपराध नियन्त्रण के लिए जरूरी कदम उठाये जाने चाहिए। दूरगामी भविष्य के लिए संवेदना एवं संस्कारों को बढावा देकर संस्कारित व्यक्तित्व व सभ्य समाज निर्माण की ओर एक सामयिक व सार्थक कदम बढा सकते हैं जिससे शान्ति समृद्धि व सभ्य समाज बनाया जा सके।