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डॉ. बिजेन्द का संपादकीय लेख “कब बदलेंगी जातिगत भावनाएँ “

रानीतराई :- जहाँ एक ओर हम विज्ञान तकनीकी व अन्य क ई क्षेत्रों में विलक्षण पायदान हासिल किए हैं वहीं दूसरी ओर कई जगहों पर हो रही भेदभाव पूर्ण व जातिगत हिंसा की घटनाएं अत्यंत चिन्ता जनक व विचारणीय है। वैज्ञानिक प्रगति व आधुनिकता के बाद भी जातिगत भेदभाव के चलते हत्या दुष्कर्म व अन्य अपराध से जाहिर है कि समाज में मानवीय संवेदना व जीवन मूल्य बेतहाशा ध्वस्त हुआ है ।ऐसी घटनाए जब होती है तो हमारी सारी मानवीय प्रगति बेमानी साबित होती है। इन अपराधो को देखते हुए भावी समाज का स्वरूप कितना दुखद होगा इसकी कल्पना की जा सकती है। मौजूदा परिवेश में जातिगत विद्वेष से प्रेरित हत्या आगजनी व दुर्व्यवहार की घटनाएं बढती जा रही हैं। दलित उत्पीड़न की भी अनेक घटनाओं समाज में घटती रहती हैं जिनमें
हिंसात्मक ही नहीं बल्कि भावनात्मक रूप से भी प्रताड़ित होते हैं। समाज में इन घटनाओं को देखकर लगता है कि जातिगत प्रताडना का शिकार हुए पीडित लोगों के लिए कोई संवेदनशील इन्सान सिहर जाए।ऐसी घटनाए अधिकतर गरीब व निम्न वर्ग के साथ होते हैं। जब तक समाज में जातिगत भेदभाव कायम रहेगा तब तक समाज में जातिगत भेदभाव का संकीर्ण सोच कायम रहेगा तब तक समाज में जातिगत हिंसा को खत्म करना मुश्किल होगा। संकीर्ण सोच के सुधार का रास्ता निकालना होगा।
वैचारिक क्रान्ति व जीवन मूल्यों के विकास से ही बेहतर समाज का निर्माण हो सकता है। शिक्षित व आधुनिक समाज कहे जाने के बाद भी जातिगत भेदभाव के चलते अगर बेटियों व मासूमो को जान गंवानी पड रही है तो यह सोचने का वक्त है कि तमाम विकास व सामाजिक विकास के इतने लम्बे सफर में हमारी सफलता इतने दुखद क्यों है ! ऐसी दुखद व अप्रिय घटनाए संवेदनहीनता व अमानवीय ता का परिचायक है व मानवता को कलंकित करता है। इन घटनाओं को रोकने के लिए व्यक्तित्व का निर्माण, नैतिक व मानवीय पुनरुत्थान की आवश्यकता है। नैतिक व मानवीय पुनरुत्थान आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विकास सिर्फ भौतिक ही नहीं बल्कि विकास जीवन मूल्यों का भी होना चाहिए। हमें उस मनःस्थिति से मुक्त होने की जरुरत है जो ऐसे जघन्य कृत्यों को अंजाम देने के लिए प्रेरित करती है। ऐन समस्याओं के समाधान के लिए नैतिक आधार पर सामाजिक क्रान्ति लानी होगी। आधुनिकता सिर्फ रहन सहन व जीवनशैली में ही नहीं बल्कि आधुनिकता विचारों मे भी होना चाहिए। इन सभी समस्याओं का समाधान समतामूलक समाज की रचना है। समता के भाव को स्वीकारने से ही समाजिक शान्ति आएगी। जातीय भेदभाव को खत्म करने, समाजिक लोकतंत्र को मजबूत करने,सामाजिक न्याय अपनाने व समता के भाव को समझने स्वीकारने व अपनाने की जरुरत है। विकास का पैमाना सिर्फ साधनों व सुविधाओं की
अधिकता से ही नहीं बल्कि संस्कारित व्यक्तित्व व बेहतर समाज के निर्माण से भी है ।दलितों, वंचितों, पिछडो व उपेक्षित वर्ग के लोगों के प्रति अमानवीय व कटुता पूर्ण व्यवहार को त्यागकर सम्मान व प्रेमपूर्ण व्यवहार जरुरी है हमें समझना होगा कि मनुष्य के रूप में जन्म लेने वाले हम सभी की हैसियत बराबर होती है ।
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