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अखिलेश-योगी का फंस गया ‘गणित’ का ‘खेल’! क्या बदल देगी UP में अगले चरणों के समीकरण?

ब्यूरों रिपोर्ट/लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव Uttar Pradesh Election के दो चरणों की वोटिंग हो चुकी है. 14 फरवरी को नौ जिलों की 55 सीटों पर वोट डाले गए. यहां से कुल 586 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है. इस बार वोटिंग का प्रतिशत पहले के मुकाबले कुछ कम रहा. यहां कुल 61.80 प्रतिशत वोटिंग हुई, जबकि पिछली बार इन्हीं सीटों पर लगभग 65 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. इस हिसाब से इस बार 3 प्रतिशत कम वोट डाले गए हैं. ऐसे में लोगों के मन में सवाल जन्म लेने लगा है कि दूसरे चरण में वोटिंग ट्रेंड क्या कहता है?



6 जिलों में 40 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी, अखिलेश के लिए यह अहम था ये चरण
दूसरे चरण में जिन 55 सीटों पर वोटिंग हुई है, उन सीटों पर 2017 के चुनाव नतीजे देखें तो बीजेपी ने 38 सीटों पर जीत हासिल की थी. समाजवादी पार्टी ने 15 और कांग्रेस ने दो सीटें जीती थीं. इस बार BJP के मुकाबले के लिए अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने गठबंधन किया है. अखिलेश की नजर शुरू से ही दूसरे चरण की सीटों पर थी, क्योंकि यहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद अच्छी है. जिन नौ जिलों में दूसरे चरण के तहत वोटिंग हुई है, उनमें से 6 जिलों में 40 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है।
क्या मुस्लिम मतदाता जानते थे कि किसे और क्यों वोट करना है.?
रामपुर में 50 फीसदी से अधिक मुसलमान हैं. इसी तरह मुरादाबाद और संभल में 47%, बिजनौर में 43 फीसदी, सहारनपुर में 41 प्रतिशत और अमरोहा में 40 फीसदी से अधिक मुस्लिम हैं. एक अनुमान के मुताबिक, इस बार इन सीटों पर मुसलमान वोटर्स ने 65 से 70 प्रतिशत तक मतदान किया है. 2017 में ये आंकड़ा 50 प्रतिशत था. यानी 50 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय के लोगों ने वोट ही नहीं डाले थे, लेकिन इस बार 15 से 20 प्रतिशत वोटिंग ज्यादा हुई है. इसका सीधा सा मतलब ये है कि मुस्लिम मतदाता जानते थे कि उन्हें किसे और क्यों वोट करना है।


वोटिंग प्रतिशत बढ़ना कही सत्ता परिवर्तन तो नहीं.?
पहले चरण की बात करें तो कुल 62.08 फीसदी मतदान हुआ था. कैराना में सबसे ज्यादा 75.12 फीसदी वोटिंग हुई तो साहिबाबाद में सबसे कम 45% मतदान हुआ था. पहले चरण में 11 जिलों की जिन 58 सीटों पर वोटिंग हुई था, उन विधान सभा क्षेत्रों में 2017 में 63.75 और 2012 में 61.03 फीसदी मतदान हुआ था. एक्सपर्ट मानते हैं कि यूपी चुनाव के पहले चरण में हुई वोटिंग को भी अग्रेसिव वोटिंग के दायरे में ही रखा जाना चाहिए. अब दूसरे चरण में जिस तरह से मतदाताओं ने उत्साह दिखाया है, उससे कई सवाल खड़े हो गए हैं. हालांकि, दूसरे चरण में पिछली बार के मुकाबले कम वोटिंग हुई है, लेकिन पहले चरण की तुलना में ये संभवतः ज्यादा है. पिछले तीन विधानसभा चुनाव के आंकड़ें देखें तो वोटिंग प्रतिशत बढ़ा था और इसका परिणाम सत्ता परिवर्तन के रूप में सामने आया था।
यूपी के यादव बेल्ट और बुंदेलखंड की सीटों पर जोर आजमाइश
बतादे की यहां दो चरणों के चुनाव में जाटलैंड, मुस्लिम बेल्ट और रुहेलखंड की लड़ाई देखने को मिली है. अब तीसरे चरण में सेंट्रल यूपी के यादव बेल्ट और बुंदेलखंड की सीटों पर जोर आजमाइश होगी. वोटरों के बदलते समीकरण के साथ ही तीसरे चरण से चुनावी मुद्दों और भाषणों की टोन भी बदल सकती है. तीसरे चरण के तहत जिन 16 जिलों की विधानसभा सीटों पर मतदान होना है, उनमें हाथरस, फिरोजाबाद, कासगंज, एटा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, कन्नौज और इटावा जिले शामिल हैं. औरैया, कानपुर देहात, कानपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा में भी तीसरे चरण के तहत वोटिंग होनी है. इनमें से सात जिले यादव बेल्ट के और पांच जिले बुंदेलखंड के हैं।


अपने ही गढ़ में सपा का खराब प्रदर्शन
सपा का प्रदर्शन इस क्षेत्र में खराब रहा है. 2017 में सत्ता में रहने के बावजूद भी सपा यहां से उम्मीद अनुरूप वोट नहीं जुटा सकी थी. पार्टी को महज आठ सीटें मिली थीं. सपा की गठबंधन सहयोगी कांग्रेस को केवल एक सीट पर जीत मिली थी. जबकि BJP ने 49 सीटें जीती थीं. 2022 में खुद अखिलेश यादव भी चुनाव मैदान में उतर आए हैं. अखिलेश के इस कदम को अपने गढ़ में समीकरण साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि, इसका कितना फायदा होगा ये तो वक्त ही बताएगा।
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