कुम्हारी
आज मानव अधिकार दिवस के अवसर पर स्वर्गीय बिंदेश्वरी बघेल शासकीय महाविद्यालय कुम्हारी के समाजशास्त्र विभाग द्वारा वर्तमान परिपेक्ष्य में “मानवाधिकार अधिकार का प्रश्न “विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए युवा समीक्षक डॉक्टर अंबरीश त्रिपाठी ने मानवाधिकार के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए यह कहा कि प्राचीन काल से ही जब मनुष्य पत्थरों पर चित्र बनाया करता था, उसे अभिव्यक्ति का मानवाधिकार प्राप्त है। उन्होंने कहा कि यूरोप में रेनेसां के पहले प्रश्न खड़े करने वाले को फांसी दे दी जाती थी उसके बाद ही मैग्नाकार्टा चार्टर आया। फ्रांस की राज्यक्रांति हुई ,अमेरिका क्रांति हुई और स्वतंत्रता एवं समानता के अधिकार की चर्चा होने लगी द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मानवीय गरिमा को अक्सर बनाए रखने के लिए राज्यों पर पाबंदी के रूप में मानव अधिकार की आवश्यकता महसूस होने लगी हालांकि मानव अधिकार एक्ट 1948 में पारित हुआ। इसके बावजूद भारत तक पहुंचने में उसे 1993 तक की प्रतीक्षा करनी पड़ी। वस्तुतः मानवाधिकार आयोग राज्य पर मानव की सार्वभौमिक अधिकारों की रक्षा की पाबंदी के रूप में कार्य करता है।
उन्होंने कहा कि सूचना का अधिकार और पीआईएल जैसे चीजें राज्य पर अंकुश लगाकर उसे मानवीय बनाती हैं कार्यक्रम का अध्यक्षीय संबोधन करते हुए डॉक्टर विनोद शर्मा ने कहा कि निराला की कविता” राजे ने अपनी रखवाली की’ वस्तुतः वर्तमान परिपेक्ष में ही नहीं बल्कि हर समय प्रसांगिक रहने वाली कविता है। जो बताती है कि राज्य समाज से दूरी बनाकर रहता है यही नहीं बल्कि जिओ पा सार्त्र ने कहा था कि आधुनिक युग में समाज और मनुष्य एवं व्यक्ति के बीच एक गहरी खाई पैदा हो गई है और यह बात आज भी प्रासंगिक है कि जब तक व्यक्ति समाज से जुड़कर एक बेहतर मनुष्य नहीं बनता वह मानव अधिकार का प्रश्न नहीं उठा सकता और व्यक्ति और समाज के बीच यही गहरी खाई राज्य और उसकी संस्थाओं को मानवाधिकार हनन की छूट ही नहीं बल्कि वैधता प्रदान करती है ।
इस अवसर पर उन्होंने मानवाधिकार पर केंद्रित अपनी लंबी कविता” उस रात जिन का कत्ल हुआ” का भी पाठ किया। इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉक्टर कल्पना पांडे ने बताया कि मानवाधिकार दिवस हमें अपने अधिकारों का दरवाजा खटखटाने और उसके प्रति सचेत रहने के लिए मनाया जाता है ।
इस अवसर पर बोलते हुए राजनीति शास्त्र की व्याख्याता डॉक्टर नुसरत जहाँ ने मानवाधिकार के गठन का इतिहास प्रस्तुत किया और बताया कि कैसे रूजवेल्ट ने 1948 में, 30 अनुच्छेदों का शपथ -पत्र प्रस्तुत कर मानवाधिकार के संरक्षण की दिशा में पहल की।
इस अवसर पर बीए प्रथम वर्ष की छात्रा रितु कमलेशिया ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए भारतीय संविधान में संरक्षित मानवाधिकारों की चर्चा करते हुए मानवाधिकार के इतिहास पर प्रकाश डाला कार्यक्रम का संचालन डॉ हरि प्रकाश सोनवानी ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ डॉली सोनी ने किया। कार्यक्रम में सभी अतिथि व्याख्याता डॉ रितु मिश्रा, डॉक्टर जिज्ञासा पांडे, प्रीति चंद्राकर ,अमित शर्मा ,शशि प्रकाश रात्रे, थानेश्वर एवं सफिया परवीन उपस्थित थे।