✍️जिला संवाददाता विक्रम कुमार नागेश गरियाबंद
गरियाबंद:-शासकीय राजीव लोचन स्नातकोत्तर महाविद्यालय राजिम इस वर्ष को स्वर्ण जयंती वर्ष के रूप में मना रहा है इसी परिप्रेक्ष्य में नैक, आईक्यूएसी व इतिहास विभाग के संयुक्त तत्वावधान में भगत सिंह की वीरता पर कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यक्रम की शुरुआत संस्था प्रमुख डॉ. सी. एल. देवांगन ने मां सरस्वती की पूजा अर्चना कर की उन्होंने कहा कि भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशील विचारक, दार्शनिक, चिंतक, लेखक और महान मनुष्य थे उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था
नैक प्रभारी डॉ. गोवर्धन यदु ने इस अवसर पर कहा कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में हमारे देश के क्रांतिकारियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है इन क्रांतिकारियों में प्रमुख रूप से भगत सिंह का नाम आता है जिन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों के माध्यम से अंग्रेजी सत्ता की नींव हिला कर रख दी। नवयुवकों को प्रेरित करने के लिए उन्होंने नवजवान सभा की स्थापना की थी जिसका बाद में उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ विलय कर दिया | बाद में इस संगठन का नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रख दिया गया | इन संगठनों के माध्यम से उन्होंने नवयुवकों में राष्ट्रप्रेम की अलख जगाई।
प्रो. एम. एल. वर्मा सहायक प्राध्यापक वाणिज्य ने कहा कि भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर 1920 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में भाग लिया। लेकिन गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस ले लिए जाने के कारण वह इससे बहुत दुखी हुए और वे इसके बाद चंद्रशेखर आजाद से जुड़ गये इसके बाद चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर उन्होंने काकोरी कांड व सांडर्स हत्याकांड में शामिल हुए और अपनी गतिविधियों से अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को हिला दिया
इतिहास विभाग के सहायक प्राध्यापक आकाश बाघमारे ने बताया कि भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था, इनके पिता किशन सिंह भी क्रांतिकारी व राष्ट्रवादी थे 1928 में साइमन कमीशन का विरोध करते समय जब लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई तब इनका बदला लेने के लिए इन्होंने सहायक पुलिस अधीक्षक सांडर्स की हत्या कर दी | जिसके बाद सेंट्रल असेंबली में बम फेंके और बटुकेश्वर दत्त के साथ स्वयं को ब्रिटिशो के हाथों सुपुर्द कर दिया।जेल में भगत सिंह करीब दो साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रान्तिकारी विचार व्यक्त करते रहते थे। जेल में रहते हुए भी उनका अध्ययन लगातार जारी रहा। उनके उस दौरान लिखे गये लेख व सगे सम्बन्धियों को लिखे गये पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से प्रो.एम.एल.वर्मा,डॉ.समीक्षा चंद्राकर,क्षमा शिल्पा मसीह, राजेश बघेल,भानु प्रताप नायक,मुकेश कुर्रे,डॉ.देवेंद्र देवांगन,आलोक हिरवानी, नेहा सेन, श्वेता खरे व अन्य प्राध्यापकगण तथा सोनिया, शिवा,ईशा,कुंदन व अन्य विद्यार्थीगण उपस्थित थे |