रानीतराई :- कहने को तो हम लोकतांत्रिक व्यवस्था में हैं लेकिन लगता है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम लोकतंत्र के भ्रम में है, वर्तमान समय में परिवारवाद के कारण लोकतांत्रिक प्रणाली केन्द्रीकृत होती जा रही है,आजादी के के कुछ वर्षो बाद ही भारतीय राजनीति में परिवारवाद व वंशवाद का बीजारोपण हो गया था जो वर्तमान समय में प्रायः अधिकतर पार्टियो में व्याप्त हो गयी है,यह लोकतंत्र पर आघात है।
परिवारवाद का प्रभाव स्थानीय स्तर पर के चुनाव में भी है, परिवारवाद वंशवाद व राजशाही का घालमेल लोकतंत्रिक मूल्यों को प्रभावित करता है,इसी कारण लोगों का राजनीतिक व्यवस्था में भरोसा नहीं बंधता एक आकड़े के अनुसार देश की पूरी आबादी पर सिर्फ दो सौ परिवार राज करते हैं जो राजतंत्र की याद दिलाते हैं, यह भारतीय राजनीति का त्रासद पक्ष है,जो लोकतंत्र के लिए घातक है व राजनीति का विकृत स्वरूप है और यही लोकतंत्र से भरोसा उठने का मूल कारण है।
दम्भ प्रभुता पदलोलुपता सामन्तवादी सोच व सत्ता का दावेदार समझने की प्रवृति से भी लोकतंत्र प्रभावित होता है,अधिकांश नेता आज भी सामन्तवादी सोच रखते हैं,विभिन्न प्रान्तों में अलग-अलग परिवारों का आधिपत्य है, कई परिवार वर्षो से राजनीति में जमे हुए हैं,राजनीति को व्यापक परिपेक्ष्य में देखने का संस्कार हो तो राष्ट्रहित स्वाभाविक है।
परिवारवाद राजनैतिक अव्यवस्था को जन्म देती है,परिवारवाद के कारण राजनैतिक व्यवस्था का सूत्र कुछ लोगों के हाथों में आता है,विचार व सिद्धांत के आधार पर पार्टियां बनना और चलना मुश्किल हो गया है, राजनीति सत्ता केन्द्रित होती जा रही है, ऐसी विसंगत व्यवस्थाओं के कारण ही संविधान विरोधी तत्व पनपते हैं,अतः लोकतंत्र के स्वास्थ्य व भविष्य के बारे में भी विचार किया जाना चाहिए ,चिन्तन यह करना चाहिए कि लोकतंत्र कैसे परिष्कृत बने।
परिवारवाद के कारण जन सामान्य का बहुत बड़ा वर्ग राजनीतिक दृष्टि से वंचित हो जाता है, इनके उत्थान व देश के विकास को महत्व देना होगा अपने राजनैतिक हितों के लिए चुनाव में जातिवाद को बनाए रखने में राजनैतिक दल सक्रिय रहते है,लोकतंत्र में एकल व्यक्ति व परिवार का प्रभाव भी लोकतंत्र को बाधित करता है,जातिवाद व परिवारवाद लोकतंत्र को दूषित करता है, यह संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।परिवारवाद व जातिगत ध्रुवीकरण के कारण सामान्य जन सत्ता में भागीदारी से वंचित हो जाता है। इस प्रकार वंचित व शोषित जनसमाज राजनीतिक दृष्टि से पिछड जाता है, सत्ता का विकेन्द्रीकरण व सामाजिक लोकतंत्र को मजबूत करने से परिवारवाद किसी वर्ग विशेष के राजनैतिक स्वार्थ का साधन नहीं बन सकता।
जब तक निम्न मध्यवर्गीय वर्ग का व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में शीर्ष स्थान पर नहीं पहुंचते तब तक पूर्ण लोकतंत्र आना मुश्किल है,योग्यता व निजी मौलिकता के अभाव में परिवारवाद के सहारे लोग शीर्ष पदों पर काबिज हो जातें हैं, लोकतंत्र में वंशवाद व परिवारवाद नई प्रतिभाई को आगे आने में बाधक भी है,सत्ता में भागीदारी के लिए सभी को अवसर मिलना चाहिए, सत्ता के विकेन्द्रीकरण सामाजिक लोकतंत्र को मजबूत करने और जातिवाद व परिवारवाद को दूर कर ही लोकतंत्र को मजबूत बनाया जा सकता है।
सत्ता विकेन्द्रीकृत व समाज की इकाईयों सभी दृष्टि से मजबूत बनेगी तब हम सार्थक गणतंत्र की ओर बढ़ सकते हैं, परिवारवाद राजनैतिक अव्यवस्था को जन्म देती है जिसके फलस्वरूप राजनैतिक व्यवस्था का सूत्र कुछ लोगों के हाथों में आता है, परिवारवाद के रहते पूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्था की परिकल्पना का साकार होना अभी शेष है, परिवारवाद का सहारा लेकर जो व्यवस्था परिचालित होती है वह स्वस्थ लोकतंत्र के स्वरूप के लिए ठीक नहीं कही जा सकती परिवारवाद लोकतंत्र की व्यवस्था को हानि पहुँचाता है,सत्ता का विकेन्द्रीकरण व सामाजिक लोकतंत्र को मजबूत करने से परिवारवाद किसी वर्ग विशेष के राजनैतिक स्वार्थ का साधन नहीं बन सकता, देश समाज व लोकतंत्र के हित में ऐसी विसंगत व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए बहुत कुछ किया जाना अभी शेष है,लोकतंत्र के प्रति जनता के विश्वास को बनाए रखा जाए, राजनैतिक स्वतंत्रता के बावजूद लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर राजनीति को उच्च आदर्शों पर कसा जाना अभी शेष है,लोकतंत्र को जीवन्त व मजबूत बनाये रखने में शासक वर्ग के साथ प्रबुद्ध नागरिको का बड़ा योगदान रहता है। जिसका प्रभाव पूर्ण नेतृत्व आम जनता की चेतना जागृत कर दिशा देता है।
राजनीति का स्तर ऊँचा होना चाहिए, देश का भविष्य मतदाताओं पर निर्भर करता है,मतदाता के नैतिक दायित्व विवेकपूर्ण व परिष्कृत दृष्टिकोण से ही वंशवाद व परिवारवाद से मुक्त होकर सार्थक गणतंत्र की ओर बढ़ सकेंगे।
आपका अपना शुभचिंतक
डॉ. बिजेन्द सिन्हा