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जीवन कठिन है फिर भी जीने का नाम जींदगी है 64 साल की पुष्पा कर रही है जीने को मशक्कत

✍️छत्तीसगढ़ 24 न्यूज़ जिला ब्यूरो चीफ सैयद बरकत अली की रिपोर्ट गरियाबंद

जीवन कठिन है फिर भी जीने का नाम जींदगी है 64 साल की पुष्पा कर रही है जीने को मशक्कत

देवभोग-गरियाबंद जिला के देवभोग ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत बांडीगांव कि पुष्पा यादव 64 साल के उम्र मे भी रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ है। पुष्पा एक वृद्ध महिला है सालों पहले घर से निकाली जा चुकि है। ना अन्न का जुगाड़ ना धन का कपड़े उसने कब बदले याद तक नहीं ठीकाना घर का होता है पर जीसके पास घर नहीं उसका कैसा ठीकाना।घरेलू हिंसा कि शिकार पुष्पा के पति के चले जाते ही पुष्पा के जीवन से मानों सब कुछ चला गया पुष्पा अपने पति की दुसरी पत्नी है जो निसंतान है पहली पत्नी के संतान है परंतु पुष्पा के लिए उनके पास कोई जगह नहीं। दुव्‍यर्वहार और ठीक-ठाक देखभाल न होने के कारण कई मानसिक यातनाएँ झेलनी पड़ीं वृद्ध विधवा पुष्पा को।बूढ़ी पीढ़ी की यातना और अकेलेपन का बोध पुष्पा के परिस्थिति को देखते ही साफ झलकता है यह बेहद मार्मिक है जीवन कठिन है असहाय है मजबूर है बावजूद जीने कि चाह ही पुष्पा कि जींदगी है।बुढ़ापे के दहलीज पे खड़ी शरीर से कमजोर बीमार पुष्पा इन दिनों देवभोग स्कूल के सामने मौजूद गांडा समाज भवन के पोर्च मे रहकर आसपड़ोस के दिये हुए भोजन व दिलासे से अब तक जीवित है। आज बूढ़े माता-पिता को पुराने सामान के रूप में देखने वाले बेटों का दारुण रूप हमारे समाज और परिवार की सच्‍चाई है। माता की ममतामयी बाँहों में समा जाने वाला बेटा और अपने बेटे के सामने ममता की प्रतिमूर्ति लगने वाली माँ आज इस कड़कड़ाती ठंड मे अकेली भूखी प्यासी लाचार दिख रही है।जीवन का अंत मृत्‍यु के भय पर विजय पाने का नहीं एक ऐसी संस्‍कृति पैदा करने का है जिसमें वृद्ध अपने को अकेला और असुरक्षित न पाएँ। जो लोग मौत से भी नहीं डरते हैं वे पुष्पा को देखते ही ऐसी ज़िंदगी से ज़रूर डरेंगे।पुरानी पीढ़ी के लिए घर में जगह धीरे-धीरे ख़त्‍म होती जा रही है। अपमान, तिरस्‍कार, उपेक्षा से दुखित पुष्पा रूपी पुरानी पीढ़ी अकेलेपन को स्‍वीकारना ज़्यादा उचित समझते हैं। क्या पुष्पा का कोई लेगा सुध क्या पुष्पा को मिल पायेगा जीने का बुनियादी सुविधा…???? या फिर वृद्ध पुष्पा अकेले ही रह जायेगी…??

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